चंडीगढ़ : हरियाणा के कर्मचारियों को पंजाब के समान वेतनमान देने
का वादा निभाना सरकार के लिए हाल-फिलहाल मुश्किल हो रहा है। हरियाणा के
कर्मचारियों को तुरंत यह सुविधा प्रदान करने पर सरकारी खजाने पर सालाना 600
करोड़ रुपये का बोझ बढ़ जाने की संभावना है। इतने अधिक वित्तीय बोझ की वजह
से ही पिछली सरकार भी कर्मचारियों को पंजाब के समान वेतनमान देने का साहस
नहीं कर पाई थी। बावजूद इसके चुनावी वादे को पूरा करने के लिए कर्मचारियों
ने सरकार पर दबाव बना दिया है।
प्रदेश में कर्मचारियों के लिए पंजाब के
समान वेतनमान की मांग नई नहीं है। हरियाणा के गठन के कुछ साल बाद से ही यह
मांग की जा रही है। विपक्ष में रहने वाली हर सरकार कर्मचारियों की इस मांग
को पूरा करने के वादे के साथ सत्ता में तो आई, लेकिन पूरा करने के लिए कभी
ठोस प्रयास नहीं हुए। कर्मचारी नेताओं ने सरकार के साथ कई दौर की बातचीत के
बाद यहां तक कह दिया कि अगर पंजाब के समान वेतनमान दिए जाने में कहीं
अड़चन है तो हरियाणा का अलग वेतन आयोग बना दिया जाए। पिछली हुड्डा सरकार की
तरह मनोहर सरकार भी कर्मचारियों की इस मांग को भी मानने को अभी तक तैयार
नहीं हुई है। अभी राज्य पर करीब 81 हजार करोड़ का कर्ज है और मनोहर सरकार
को भी हर माह कर्ज लेना पड़ रहा है। अभी तक करीब छह हजार करोड़ का कर्ज
लिया जा चुका है।
प्रदेश में कर्मचारियों की वेतन विसंगतियां दूर करने के
लिए जी माधवन के नेतृत्व में एक आयोग तो बना हुआ है। पिछली हुड्डा सरकार
में बने इस आयोग को मनोहर सरकार एक्सटेंशन भी दे चुकी है, लेकिन आयोग ने
अभी तक कर्मचारियों के सबसे बड़े संगठन सर्व कर्मचारी संघ को आज तक बातचीत
के लिए नहीं बुलाया है। हालांकि सरकार के मंत्री पंजाब के समान वेतनमान
देने के अपने वादे को बार-बार दोहराते रहे हैं, लेकिन इसे लागू करने की
दिशा में अभी तक ठोस प्रयास आरंभ नहीं किए गए हैं। dj
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