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Tuesday, 14 November 2017

राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण : सवालों में विद्यार्थी, फार्मेट में उलङो शिक्षक

** बच्चों का लर्निंग लेवल जांचने को सरकारी स्कूलों में हुई परीक्षा, पूछे गए प्रतियोगी परीक्षाओं की तर्ज पर सवाल
जींद : राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण के तहत सरकारी स्कूलों में लर्निंग लेवल जांचने के लिए ली गई परीक्षा महज खाना पूर्ति ही नजर आई। परीक्षा के लिए जो फॉर्मेट बनाया गया था, वह बच्चों के साथ-साथ ड्यूटी पर लगे जेबीटी प्रशिक्षु स्टाफ को भी समझ नहीं आया। सरकारी स्कूलों में तीसरी कक्षा के जिन बच्चों को ढंग से हंिदूी भी पढ़नी नहीं आती, उनसे बड़े स्तर की प्रतियोगी परीक्षाओं की तर्ज पर सवालों के जवाब आप्शन में पूछे गए। परीक्षा सुबह 10 बजे शुरू होनी थी, लेकिन कई स्कूलों में 11 बजे तो कहीं साढ़े 11 बजे परीक्षा शुरू हुई। फॉर्मेट में बच्चों से संबंधित जानकारी ड्यूटी पर लगे स्टाफ को भरनी थी, जिसे भरने के लिए देर रात तक जेबीटी प्रशिक्षु लगे रहे और उसके बाद जिला सर्व शिक्षा अभियान कार्यालय में जमा कराया। 1एनसीइआरटी के माध्यम से भारत सरकार द्वारा सरकारी स्कूलों में पढ़ाई का स्तर जांचने के लिए सोमवार को प्रदेशभर में यह परीक्षा आयोजित की गई, जिसमें कक्षा तीन, पांच व आठ के विद्यार्थियों को शामिल किया गया। जींद जिले से 156 स्कूलों को शामिल किया गया। कक्षा तीन व पांच के विद्यार्थियों के लिए उनके विषय के अनुसार 45 व आठवीं कक्षा में 60 प्रश्न पूछे गए। परीक्षा में संबंधित स्कूल के शिक्षक किसी प्रकार की मदद न कर सकें, इसलिए उन्हें इससे दूर रखा गया। उनकी जगह आइटीआइ व डाइट के स्टाफ की ड्यूटी लगाई गई, जिन्हें परीक्षाओं के आयोजन के लिए दो दिन की ट्रेनिंग भी दी गई। इसके बावजूद परीक्षाओं के आयोजन में काफी अव्यवस्था रही। स्टाफ को ओएमआर सीट पर क्रमांक कैसे भरना है, बच्चों से आप्शन कैसे भरवाने हैं, इसकी जानकारी नहीं थी। इसके लिए उन्होंने स्कूल में कार्यरत स्टाफ की मदद लेनी पड़ी। इसके बावजूद जेबीटी प्रशिक्षु देर रात्रि तक फॉर्मेट को पूरा करने के लिए स्कूलों में ही देर रात तक जुटे रहे। वहीं जिला सर्व शिक्षा अभियान कार्यालय में भी फोन की लाइट जलाकर जेबीटी प्रशिक्षु फॉर्मेट को भरते नजर आए। जेबीटी प्रशिक्षु ने बताया कि डिटेल आप्शन टाइप में भरनी थी, जिसे बच्चे नहीं भर सकते थे, इसी वजह से उनका काम बढ़ गया। 
"ड्यूटी में लगे स्टाफ को दो बार ट्रेनिंग दी गई है। कोई इस बारे में जानकारी होने से इंकार करता है, तो वह गलत है। फॉर्मेट में बच्चों का नाम, जन्मतिथि, स्टाफ को ही भरनी है, जिसमें समय लग रहा है।"-- जयवीर ढांडा, प्राचार्य, डाइट ईक्कस।

नहीं पढ़ पाए पैराग्राफ
तीसरी कक्षा के लिए बनाए गए फॉर्मेट, जिसमें कुल 32 पेज थे, में कहानी टाइप में पैराग्राफ दिए गए, उन्हीं में से सवाल तैयार किए गए। बच्चों को पैराग्राफ पढ़ कर उनमें से जवाब ढूंढ़कर आप्शन में सवालों के जवाब भरने थे। ज्यादातर बच्चे पैराग्राफ ही नहीं पढ़ पा रहे थे, सवालों के जवाब ढूंढ़ना तो बहुत दूर की बात है। जैसे-तैसे ड्यूटी पर लगे स्टाफ ने उन्हें समझा कर आप्शन पर निशान लगवाए। काफी बच्चे तो ऐसे भी थे, जिन्हें ख खरगोश व घ घर की भी पहचान नहीं थी। यह हाल हरिजन बस्ती के राजकीय प्राथमिक स्कूल, भिवानी रोड स्थित बालाश्रम स्कूल व अन्य स्कूलों का था, तो ग्रामीण क्षेत्र के स्कूलों से क्या उम्मीद की जा सकती है।

बच्चों को हिंदी आती ही नहीं कैसे पढ़ेगे गणित व साइंस


रेलवे जंक्शन के पास राजकीय स्कूल की आठवीं कक्षा के बच्चों को सर्वेक्षण में शामिल किया गया। कक्षा में कुल 38 विद्यार्थी हैं, जिनमें से रोल नंबर नौ से 38 तक के बच्चों का परीक्षा के लिए चयन किया गया, जिनमें से 12 विद्यार्थी तो स्कूल ही नहीं आए। वहीं परीक्षा में बैठे बाकी विद्यार्थी भी एक-दूसरे का मुंह ताक रहे थे। खुद स्कूल स्टाफ को ही भरोसा नहीं था कि उनके स्कूल के बच्चे किसी सवाल का जवाब दे पाएंगे। एक शिक्षिका के अनुसार ज्यादातर बच्चों को हंिदूी भी नहीं पढ़नी आती है, वे मैथ व साइंस कैसे कर पाएंगे। 

सर्वे में गुरुजी के कौशल की होगी परख


केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रलय द्वारा शिक्षा में सुधार को राष्ट्रीय स्तर सर्वे किया जा रहा है। सर्वे के माध्यम से बच्चों के लर्निंग लेवल का पता लगाया जाएगा। यह सर्वे बच्चों के साथ-साथ उनको पढ़ाने वाले शिक्षकों के कौशल का भी है। इसी सर्वे के आधार पर शिक्षा के क्षेत्र में सुधार के लिए कदम उठाए जाएंगे। 1

पूछे गए सिलेबस से बाहर के प्रश्न

हरियाणा विद्यालय अध्यापक संघ के प्रेस प्रवक्ता भूप सिंह वर्मा ने सर्वे पर सवाल उठाते हुए कहा कि परीक्षा के लिए जो फॉर्मेट दिया गया, वह काफी बड़े लेवल का है, जिसमें वे सवाल शामिल किए गए हैं, जो पाठ्यक्रम में नहीं हैं। मूल्यांकन व सर्वे के नाम पर सरकारी स्कूलों को बदनाम कर निजी हाथों में सौंपने की साजिश रची जा रही है। अध्यापक व बच्चों में भय का माहौल पैदा किया जा रहा है। अध्यापक रोज रोज होने वाले मूल्यांकन टेस्ट व सर्वे में ही उलझकर रह गए हैं। बच्चों को पढ़ाने के वास्तविक घंटे लगातार कम होते जा रहे हैं।


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