सिरसा : सरकारी स्कूलों में पाठ्य पुस्तक पहुंचाने में नाकाम रहे शिक्षा विभाग के अधिकारियों व शिक्षा मंत्री ने यह बयान दिया था कि स्कूलों में बनाए गए बुक बैंक में रखी पुरानी पुस्तकें विद्यार्थियों को दी हैं। ताकि, पाठ्य पुस्तकों की सप्लाई में देरी का असर विद्यार्थियों की पढ़ाई पर न पड़े।
विभाग के इस बयान के उलट आरटीआइ के तहत मिली जानकारी ने शिक्षा विभाग की कार्य प्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए हैं। जिले के दस सरकारी स्कूलों के प्राचार्य से सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी में विभाग की इस दलील की कलई खुल गई। सभी स्कूलों के प्राचार्यो ने अपने जवाब में बताया है कि न तो उनके यहां कोई बुक बैंक है और न ही विद्यार्थियों को पुरानी पुस्तकें दी गई हैं। और, न ही कभी पुराने विद्यार्थियों से कभी पुस्तकें एकत्र की गई। सूचना में यह भी बताया गया है कि अगस्त 2013 तक किसी स्कूल में तीसरी से आठवीं कक्षा तक पुस्तकें नहीं पहुंच पाई।
आरटीआइ कार्यकर्ता करतार सिंह ने प्राचार्यो से पूछा गया कि क्या कभी मुख्यालय से पुरानी पाठ्य पुस्तक एकत्र व बांटने के कभी आदेश मिले हैं, सभी का जवाब ना मिला।
आरटीआई के तहत प्राचार्यो से मिले जवाब से स्पष्ट है कि मंत्री ने लेकर वरिष्ठ अधिकारियों ने स्कूल में बुक बैंक की स्थापना और विद्यार्थियों को पुरानी किताबें बांटने की दलील खोखली थी।
इन स्कूलों से मांगी गई थी सूचना :
राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय खैरपुर, राजकीय माडल संस्कृति स्कूल, राजकीय कन्या वरिष्ठ माध्यमिक स्कूल, राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक स्कूल जोधकां, राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक स्कूल माधोसिंघाना, राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक स्कूल ढूकड़ा व राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक स्कूल जमाल शामिल हैं।
सबने कहा, बिन पढ़ाई बेमानी है परीक्षा
प्राचार्यो से एक सवाल यह भी पूछा गया कि 31 अगस्त तक यदि पुस्तकें नहीं उपलब्ध हैं तो विद्यार्थी के प्रदर्शन की बात तर्क संगत है। सभी प्राचार्यो ने इसका जवाब भी ना में दिया। यानि, बिना पुस्तकों के परीक्षा की बात के कोई मायने नहीं हैं। .....dj
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