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Thursday, 28 July 2016

फीस बढ़ोतरी के लिए लेनी होगी मंजूरी : हाई कोर्ट

** मनीष सिसोदिया ने हाई कोर्ट के फैसले का किया स्वागत
** कहा, फैसले से प्राइवेट स्कूलों को पारदर्शी व जवाबदेह बनाने में मिलेगी मदद
** हाई कोर्ट ने निजी स्कूलों की पुनर्विचार याचिका की रद, कहा शिक्षा निदेशालय की अनुमति जरूरी 

नई दिल्ली : दिल्ली हाई कोर्ट ने बुधवार को अपने एक फैसले में फिर यह स्पष्ट किया है कि शिक्षा निदेशालय की मंजूरी के बिना दिल्ली के गैर सहायता प्राप्त स्कूल फीस में वृद्धि नहीं कर सकते।1मुख्य न्यायाधीश जी. रोहिणी व न्यायमूर्ति जयंत नाथ की खंडपीठ ने गत 19 जनवरी को दिए हाई कोर्ट के फैसले पर पुनर्विचार करने से इन्कार करते हुए निजी स्कूलों की एसोसिएशन द्वारा दायर पुनर्विचार याचिका रद कर दी है। 1गौरतलब है कि 19 जनवरी को हाई कोर्ट ने निर्देश दिया था कि गैर सहायता प्राप्त स्कूल दिल्ली सरकार के शिक्षा निदेशालय की अनुमति के बिना फीस बढ़ोतरी नहीं कर सकते। खंडपीठ ने बुधवार को अपने फैसले को स्पष्ट करते हुए कहा कि दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) से सस्ती दरों पर भूमि लेने वाले सभी गैर सहायता प्राप्त स्कूल शिक्षा निदेशालय की मंजूरी लिए बिना अपनी मर्जी से फीस में वृद्धि नहीं कर सकते। अदालत द्वारा पूर्व में इस मुद्दे पर दिए फैसले में पुनर्विचार का कोई आधार नहीं है। निजी स्कूलों को आदेश का पालन करना ही होगा। हाई कोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट पहले ही मॉडर्न स्कूल मामले में इस मुद्दे पर अपना रुख स्पष्ट कर चुका है। खंडपीठ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का निर्णय सभी स्कूलों पर लागू होता है और इस फैसले के बाद उनके अपने फैसले पर भी पुनर्विचार की कोई गुंजाइश नहीं है। यहां बता दें कि वर्ष 2004 व 2007 में अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि स्कूलों में फीस वृद्धि के दौरान तय नियमों का पालन करना होगा और एक नियम यह भी है कि इससे पूर्व शिक्षा निदेशालय से अनुमति ली जाए। याची ट्रांस यमुना प्राइवेट स्कूल फेडरेशन व फोरम फॉर क्वालिटी एजुकेशन के अधिवक्ता ने तर्क रखा था कि इस फैसले से उनको मिले स्वायत्ता के अधिकार का हनन होगा। यह निर्णय गलत है और इस पर पुनर्विचार किया जाना जरूरी है। सरकार ने भी विज्ञापन जारी कर कार्रवाई करने की चेतावनी दी है, ऐसे में सरकार को कार्रवाई से रोका जाए। वहीं, एनजीओ जस्टिस फॉर ऑल के अधिवक्ता अशोक अग्रवाल, खगेश झा व शिक्षा निदेशालय के अधिवक्ता ने उनके तर्क पर आपत्ति जताते हुए कहा कि स्कूलों ने सस्ती दरों पर भूमि ली है और उन्हें तय कानून का पालन करना ही होगा। उल्लेखनीय है कि खंडपीठ ने 19 जनवरी को दिए अपने आदेश में कहा था कि स्कूल मुनाफाखोरी व स्कूली शिक्षा के व्यावसायीकरण में लिप्त नहीं हो सकते। अदालत ने फैसले में स्पष्ट कर दिया था कि मान्यता प्राप्त गैर सहायता प्राप्त स्कूल, दिल्ली स्कूल शिक्षा अधिनियम के तहत ही फीस ले सकते हैं। यदि कोई स्कूल मुनाफाखोरी व बिना मंजूरी के फीस बढ़ोतरी में लिप्त पाया जाता है तो शिक्षा निदेशालय को हस्तक्षेप का पूरा अधिकार है।                                                      dj

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