कसान : जिन शिक्षा के मंदिरों पर देश के गुणवत्तापरक शिक्षा ढांचे को मजबूत
करने की जिम्मेवारी है, वे स्वयं दीमक बनकर इसे खोखला कर रहे हैं। आरटीआइ
के माध्यम से मिली जानकारी ने देश की गुणवत्तापरक शिक्षा ढांचे पर पहनाए जा
रहे नकाब को उतार कर रख दिया है। आरटीआइ कार्यकर्ता जसकरण बाजवा के संघर्ष
से यह मकड़जाल छिन्न-भिन्न हुआ है।
बाजवा ने बताया कि जिला कैथल में कुछ
निजी स्कूलों द्वारा शिक्षण अनुभव प्रमाणपत्र के नाम पर फर्जीवाड़ा किया
जा रहा है। उसने बताया कि राजौंद के एक निजी स्कूल में अशोक कुमार नामक
प्रार्थी द्वारा 4 अगस्त 2012 को आवेदन किया गया। बीईओ राजौंद उस पर दिनांक
आठ अगस्त 2012 को हस्ताक्षर करते हैं जबकि डीईओ कार्यालय की तरफ से इसकी
प्रमाणिकता पर 13 जुलाई 2012 को मोहर लगी। तय मानदंडों के अनुसार पहले बीईओ
और फिर डीईओ द्वारा अंतिम प्रक्रिया को पूरा किया जाता है। इसी क्रम में
प्राध्यापकों को अनुभव प्रमाण पत्र देने में बड़ी गड़बड़ी हुई। रामकुमार
रंगा ने जुलाई 2012 में बीईओ कलायत का चार्ज लिया। जबकि बालू व चौशाला गांव
के दो निजी स्कूलों द्वारा दो प्रमाणपत्र जारी किए गए उन पर इसी बीईओ के
25 जून 2012 को हस्ताक्षर दर्शाए गए हैं। अर्थात बीइओ के कार्यभार संभालने
से पहले ही प्रमाणपत्र बन चुके थे। हैरानी का सबसे बड़ा विषय यह है कि 22
जून 2012 से 13 जुलाई 2012 तक दिए गए कुछ अनुभव प्रमाण पत्रों पर बीइइओ के
हस्ताक्षर है। जबकि 25 जून 2012 से 13 अगस्त 2012 तक एक फेहरिस्त प्रमाण
पत्रों की ऐसी है, जिस पर बीईओ ने हस्ताक्षर किए। कौल कस्बे के पांच
प्राध्यापकों के शिक्षण अनुभव प्रमाण पत्रों पर संबंधित बीइओ के हस्ताक्षर
ही नहीं है। चौंकान्ने वाला पहलू यह कि अनुभव प्रमाण पत्र पर 25 जून 2012
को डीईओ के हस्ताक्षर होते है। जबकि ई-मेल पर यह रिपोर्ट 27 जुलाई 2012 को
पहुंच जाती है। कुतबपुर से तीन प्रार्थियों को अनुभव प्रमाण पत्र जारी किए
गए। डीईओ द्वारा 25 जून 2012 को इस पर हस्ताक्षर किए गए।
सीएम के पास
पहुंची रिपोर्ट :
आरटीआइ कार्यकर्ता जसकरण बाजवा ने बताया कि अनुभव प्रमाण
पत्रों के नाम पर जो गड़बड़झाला जिले के निजी स्कूलों में चल रहा है उसकी
पूरी रिपोर्ट सीएम ¨वडो के माध्यम से मुख्यमंत्री को भेजी गई है। इसमें
मामले की निष्पक्ष जांच कराने की मांग की गई है।
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