** नेचुरल जस्टिस के सिद्धांत को खत्म कर नियम लागू करना आसान नहीं
नई दिल्ली : केंद्र सरकार ने सातवें वेतन आयोग के नोटिफिकेशन में कहा है कि काम करने वाले कर्मचारियों को सालाना इंक्रीमेंट नहीं मिलेगा। पर यह इतना आसान भी नहीं होगा। मौजूदा नियमों के तहत ऐसा करना संभव नहीं होगा। इसके लिए सरकार को नियम बदलने पड़ेंगे। पूर्व कैबिनेट सचिव और योजना आयोग के सदस्य रहे बीके चतुर्वेदी ने बताया कि यह बेहद मुश्किल काम है। सरकार चाहेगी तो नोटिफिकेशन लाकर नियम बदल सकती है। पर अचानक से इसे लागू नहीं किया जा सकता है। चतुर्वेदी मानते हैं कि इससे कामकाज सुधरेगा, पर किसी का मूल्यांकन एक साल में नहीं हो सकता है। इसमें कम से कम 7-8 साल लगते हैं।
बीएमएस(भारतीय मजदूर संघ) के क्षेत्रीय संगठन सचिव पवन कुमार का कहना है कि यह तय करना कि किस ने काम किया और किसने नहीं, मुश्किल है। हालांकि, इस नियम से निचले स्तर के कर्मचारी कम ही प्रभावित होंगे। निदेशक और ऊपर के अधिकारियों पर ज्यादा असर होगा। इनके काम का अब भी कई तरह से मूल्यांकन होता है। अचानक से किसी का इंक्रीमेंट रोकना नेचुरल जस्टिस के नियम के खिलाफ भी होगा। इससे अदालती मामले बढ़ेंगे। ऐसे में नए नियम बनाकर उन्हें नोटिफाई भी करना होगा।
पूर्व श्रम सचिव और योजना आयोग की सदस्य सचिव सुधा पिल्लई ने कहा कि नई व्यवस्था लागू हुई तो काम करने का माहौल बदलेगा। पर किसी को अगर यह कहना है कि आप काम नहीं करते हैं तो उसे बताना होगा कि आप कैसे काम नहीं कर रहे। उसे जवाब का अवसर देना होगा।
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