जींद : न्यूनतम तापमान 04.4 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच चुका है और सर्द हवाओं ने कंपकंपी चढ़ा दी है ऐसे में ठंडी जमीन पर पढ़ाई? रिपोर्ट और डिमांड तो हर साल भेजी जाती है। फिर भी बच्चों के लिए ड्यूल डेस्क की कमी स्कूलों में पूरी नहीं हो रही। कई जगह तो बच्चों के लिए पर्याप्त कमरे भी नहीं हैं। जी हां, जिले के सरकारी स्कूलों में 50 फीसदी बच्चे ठंडे फर्श, कच्ची जमीन या फिर टाट-पट्टी पर बैठकर पढ़ाई करने को मजबूर हैं। पढ़ाई तो जैसे-तैसे हो रही है, इसका असर उनके स्वास्थ्य पर पड़ रहा है। नतीजतन 10 फीसदी बच्चे हर दिन स्कूल से अनुपस्थित रहते हैं।
सिर पर नहीं छत
रधाना गांव का राजकीय हाई स्कूल। पूरी बिल्डिंग खस्ताहाल है। 16 कमरे कंडम घोषित हैं, जिनमें से 9 कमरे गिराए जा चुके हैं। छठी से दसवीं कक्षा तक 259 बच्चे स्कूल में पढ़ते हैं। दो कमरे ही बच्चों की कक्षाएं लगाने के लिए बचे हैं। बेंच भी महज 75 हैं। अब कड़ाके की ठंड में बाहर बैठकर पढ़ाई करते हैं। बच्चे बीमार पड़ रहे हैं। सरकार की तरफ से नए कमरों के लिए ग्रांट राशि जारी नहीं हुई है। पेड़ों के नीचे बैठते हैं तो वे इन दिनों धुंध से टपकते रहते हैं।
जर्जर बिल्डिंग, ठंडा फर्श
हाट गांव स्थित राजकीय कन्या हाई स्कूल। स्कूल में छात्राओं के लिए पर्याप्त ड्यूल डेस्क नहीं है। स्कूल के छह कमरे कंडम घोषित किए जा चुके हैं। बावजूद इसके नए कमरे नहीं बन पाए हैं। बाहर खुले में जमीन पर बैठकर छात्राएं पढ़ाई करती पाई गईं। स्कूल में 300 के करीब छात्राएं हैं। बैठने के लिए व्यवस्था न के बराबर है।
स्कूल संख्या छात्र उपलब्ध डेस्क और जरूरत
प्राइमरी 469 81,705 33,803 13,238
मिडिल 100 9,519 3,403 1,915
हाईस्कूल 121 26,722 7,551 5,976
सीसे 86 41155 9,281 11,879
नोट : अभी छठी से आठवीं कक्षाओं के लिए ड्यूल डेस्क सीधे स्कूलों में पहुंच रहे हैं, कितने पहुंचे इसकी रिपोर्ट नहीं आई है।
कुछ बेंच आए पर पूर्ति नहीं
डिफेंस कॉलोनी स्थित राजकीय सीनियर सेकेंडरी स्कूल। सभी कक्षाएं बाहर बरामदे या खुले मैदान में धूप में लगी थी। 11वीं व 12वीं कक्षा के विद्यार्थी हों या छठी से दसवीं कक्षा के विद्यार्थी, बेंच तो दूर टाटपट्टी भी पूरी नहीं थी। कई बच्चे तो अपने घर से ही चटाई या प्लास्टिक कवर लेकर स्कूल पहुंचे थे। पूछताछ पर पता चला कि धूप निकलने के कारण बच्चों को बाहर बैठाया गया है। छठी से आठवीं कक्षाओं के लिए ड्यूल डेस्क आए हैं। अभी सभी बच्चों को ड्यूल डेस्क उपलब्ध नहीं हुए हैं।
2009 के बाद नहीं मिले बेंच
स्कूलों में ड्यूल डेस्क की कमी वैसे तो शुरू से ही है। वर्ष 2009 में स्कूलों में कुछ ड्यूल डेस्क भेजे गए थे। हालांकि यह जरूरत के अनुसार पूरे नहीं थे। पुराने ड्यूल डेस्क टूट गए और नए आए नहीं। हर साल डिमांड भेजी जाती रही है। मॉडल स्कूलों की व्यवस्था को देखते हुए जरूर प्रदेश के 213 स्कूलों में बेंचपिछले साल भेजे गए थे। हालांकि अभी छठी से आठवीं कक्षाओं के लिए ड्यूल डेस्क स्कूलों में भेजे जा रहे हैं। ये भी अभी पर्याप्त मात्रा में नहीं आए हैं।
"छात्र संख्या के हिसाब से ड्यूल डेस्क की कमी है। प्राइमरी विंग में ड्यूल डेस्क पूरे हैं। छठी से आठवीं कक्षाओं के विद्यार्थियों के लिए भी नए ड्यूल डेस्क आए हैं। स्कूल स्तर पर ड्यूल डेस्क के अभाव में टाटपट्टी का प्रबंध किया गया है।"-- दिलबाग मलिक, जिला शिक्षा अधिकारी, जींद
घर से लेकर आया हूं
स्कूल में बेंच नहीं हैं। बाहर मैदान में कक्षाएं इन दिनों लग रही हैं। मिट्टी में बैठने की बजाय मैं अपने बैग में घर से ही प्लास्टिक बैग से बनी चटाई लेकर आता हूं। - राहुल, कक्षा आठवीं
कई बार होते हैं बीमार
"ठंड में घरवाले तो गर्म कपड़े व जूते-जुराब डालकर स्कूल जाने की नसीहत देते हैं। स्कूल पहुंचने पर ठंडे फर्श पर बैठना पड़ता है। कई बार बीमार हो जाते हैं, लेकिन पढ़ाई तो करनी है।"-- विक्रम, कक्षा नौवीं
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