** सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ है नीति
चंडीगढ़ : हरियाणा सरकार द्वारा अस्थाई कर्मचारियों को नियमित करने की नीति को चुनौती देने वाली एक याचिका पर सुनवाई के दौरान मंगलवार को जस्टिस एस के मित्तल पर आधारित बैंच के समक्ष हरियाणा सरकार ने शॉर्ट हलफनामा दायर किया। इस पर बेंच ने सरकार का हलफनामा वापिस लौटाते हुए कहा कि कोर्ट इस मामले की शॉर्ट नही विस्तृत जवाब की अपेक्षा रखती है। बेंच ने सरकार को विस्तृत जवाब दायर करने का आदेश देते हुए सुनवाई 14 नवम्बर तक स्थगित कर दी।
हरियाणा सरकार ने अपने कॉन्ट्रेक्ट, एडहॉक एवं अस्थायी तौर पर तीन वषों से अधिक कार्यरत ग्रुप बी, सी और डी के कर्मचारियों को नियमित किये जाने की जो नीति बनाई है, उसकी मंशा पर सवाल उठाते हुए इस नीति को पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट में याचिका दायर कर चुनौती दी गयी थी। याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस एसके मित्तल एवं जस्टिस अरुण पल्ली पर आधारित खंडपीठ ने हरियाणा सरकार से जवाब तलब किया था। खंडपीठ ने हरियाणा सरकार को नोटिस जारी कर पूछा था कि क्यों न हरियाणा सरकार द्वारा बनाई गयी इस नीति पर रोक लगा दी जाए। याचिकाकर्ताओं की एडवोकेट ने आरोप लगाया है कि हरियाणा सरकार ने 16 जून व 7 जुलाई को इन कर्मचारियों को नियमित करने के लिए जो नीति बनाई है वह पूरी तरह से गैर-कानूनी और सुप्रीम कोर्ट द्वारा वर्ष 2006 में उमा देवी के केस में पांच जजों की खंडपीठ द्वारा दिए गए फैसले के भी खिलाफ है। सुप्रीम कोर्ट अपने आदेशों में कह चुका है कि बिना तय प्रक्रिया के नियुक्त किये गए कॉन्ट्रेक्ट, एडहॉक एवं अस्थायी कर्मियों को नियमित नहीं किया जा सकता है अगर ऐसा किया जाता है तो यह उन योग्य उम्मीदवारों के साथ अन्याय होगा जो तय प्रक्रिया के तहत अपनी नियुक्ति की प्रतीक्षा कर रहे हैं। लिहाजा सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्य सरकारों को निर्देश दिए थे की वह नियमित नियुक्तियां करे अन्यथा राज्य सरकारें गैर-कानूनी तरीके से कॉन्ट्रेक्ट, एडहॉक एवं अस्थायी कर्मियों की नियुक्तियां कर ही काम चलती रहेंगी।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के अनुसार सिर्फ एक बार ही कर्मचारियों को यह फायदा दिया जा सकता है और हरियाणा सरकार वर्ष 2011 में कई कर्मचारियों को पहले ही नियमित कर चुकी है। dj
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