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Tuesday, 23 September 2014

हाईकोर्ट में प्रिंसिपल सेक्रेटरी एजुकेशन तलब

** 134ए खारिज करने की याचिका पर अदालत सख्त 
चंडीगढ़ : हरियाणा में प्राइवेट स्कूलों की मनमानी फीस पर लगाम कसने के लिए बनाए गए हरियाणा स्कूल एजुकेशन रूल्स की धारा 134ए खारिज करने की मांग संबंधी याचिका पर सोमवार को पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने हरियाणा के प्रिंसिपल सेक्रेटरी एजुकेशन, हरियाणा के एलिमेंटरी एजुकेशन विभाग के डायरेक्टर को कोर्ट में पेश होने के निर्देश दिए हैं। जस्टिस सूर्यकांत जस्टिस जसपाल सिंह की खंडपीठ ने 29 सितंबर के लिए मामले पर अगली सुनवाई तय की है। 
फरीदाबाद की हरियाणा प्रोग्रेसिव स्कूल कांफ्रेंस की तरफ से याचिका दायर कर कहा गया कि उनके साथ 273 प्राइवेट स्कूल जुड़े हैं। याचिका में मांग की गई हरियाणा स्कूल एजूकेशन रूल्स की धारा 134 खारिज की जाए। साथ ही हरियाणा सरकार के फीस एंड रेगुलेटरी कमेटी का गठन करने का फैसला भी खारिज किया जाए। हरियाणा सरकार की तरफ से हाईकोर्ट में जवाब दायर कर कहा कि इस बारे में नियम 158 को प्रभावी बनाने के लिए हरियाणा सरकार ने नियम 158 और बी का प्रावधान रखा है। इस काम के लिए फीस एंड फंड रेगुलेटरी कमेटी का गठन किया जाएगा। कमेटी का चेयरमैन डिविजनल कमिश्नर स्तर का अधिकारी होगा। सदस्य के लिए चेयरमैन डीईओ या डीईईओ और दूसरे सदस्य के रूप में रिटायर्ड अकाउंट आफिसर या सीए को नामित कर सकता है। जवाब में कहा गया कि यदि किसी अभिभावक को स्कूल द्वारा वसूली गई फीस से शिकायत है तो इस कमेटी को अपनी शिकायत दे सकता है। इन शिकायतों का कमेटी 60 दिन के भीतर निपटारा करेगी। कमेटी स्कूल को वसूली गई फीस रिफंड करने के निर्देश दे सकती है। इसके अलावा स्कूल को मामले पर पक्ष रखने का मौका देने के बाद स्कूल की मान्यता भी छीन सकती है। कमेटी के फैसले से असंतुष्ट होने की स्थिति में शिकायतकर्ता या स्कूल दोनों ही 30 दिन के भीतर शासकीय सचिव को अपील कर सकते हैं। 
इस मामले को उठाने वाले दो जमा पांच मुद्दे जन आंदोलन के अध्यक्ष वकील सत्यवीर सिंह हुडा ने कहा कि 19 जून 2013 को हरियाणा सरकार ने अधिसूचना जारी कर 25 फीसदी आरक्षण को कम कर 10 फीसदी कर दिया लेकिन इसे विधानसभा से पारित नहीं कराया गया। 
हाईकोर्ट ने 20 नवंबर 2013 के फैसले में कहा था कि अधिसूचना को लागू करने के लिए विधानसभा से पारित कराया जाए। ऐसा करने पर अधिसूचना प्रभावी नहीं रही है और पहले की स्थिति ही बरकरार है जिसमें 25 फीसदी आरक्षण देने का नियम है। ऐसे में निजी स्कूलों की याचिका खारिज की जाए।                                                                        db

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