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Monday, 22 September 2014

प्राथमिकता से दूर शिक्षा

जरूरी काम : प्रधानमंत्री के सपनों को साकार करने के लिए मानव संसाधन मंत्रलय को आगे आना पड़ेगा और कम से कम प्रत्येक बच्चे को माध्यमिक स्तर तक शिक्षा देनी होगी
डॉ. अब्दुल कलाम का व्याख्यान समाप्त होने के बाद एक दस वर्ष की बच्ची उनके पास ऑटोग्राफ लेने आती है। वैज्ञानिक कलाम उस बालिका से पूछते हैं, ‘तुम्हारे जीवन की अभिलाषा क्या है’ बच्ची सरलता से जवाब देती है, ‘मैं विकसित भारत में रहना चाहती हूं।’ दार्शनिक कलाम अपने विचार 1998 में ‘इंडिया- 2020’ पुस्तक में प्रकट करते है और पुस्तक उस बच्ची को समर्पित करते हैं। पुस्तक में कलाम साहब उन रास्तों का जिक्र करते हैं जिन पर चलकर भारत 2020 तक विकसित देशों की श्रेणी में आ सकता है। वह प्रत्येक नागरिक को समान गुणवत्ता वाली शिक्षा एवं समान स्वास्थ्य सेवा के पक्षधर हैं। वह चाहते हैं कि सरकार सभी नागरिकों को यह सुविधा मुहैया कराए और वह भी सस्ती दर में। पुस्तक आने के पंद्रह वर्षो के बाद संयुक्त राष्ट्र ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट ‘मानव विकास 2013 : दक्षिण का उदय’ में स्वीकार किया है कि आने वाला वक्त दक्षिण के राष्ट्रों का है। अब दक्षिण के राष्ट्र, विशेषकर चीन, भारत और ब्राजील विश्व के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। रिपोर्ट के मुताबिक 2020 तक तीन विकासशील देशों-चीन, ब्राजील और भारत की कुल जीडीपी कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, इग्लैंड और अमेरिका की कुल जीडीपी को पार कर जाएगी। यह विपरीत परिस्थितियों में विकासशील देशों की जीवटता और उसके नागरिकों के संघर्ष करने की क्षमता को दर्शाता है।
दुर्भाग्य से भारत में पिछले दशक के आर्थिक विकास में निजी क्षेत्र ने तो अपना योगदान दिया, परंतु सरकार ने ‘पूंजी संकट’ के चलते न तो ढांचागत क्षेत्र में और न ही सामाजिक क्षेत्र में जैसे शिक्षा एवं स्वास्थ्य सेवाओं में अपेक्षित निवेश किया। जब देश में शिक्षा नीति पर सकारात्मक बहस की जरूरत है तब मीडिया मानव संसाधन मंत्री की योग्यता पर व्यर्थ में चर्चा कर रहा है। किसी कैबिनेट स्तर के मंत्री की योग्यता पर उठाया गया प्रश्न मौलाना अब्दुल कलाम आजाद की याद दिलाता है। मौलाना आजाद की संपूर्ण शिक्षा गैर पारंपरिक ढंग से हुई। वह कभी भी स्कूल या विश्वविद्यालय पढ़ने के लिए नहीं गए। उन्होंने बहुत ही योग्य शिक्षकों के द्वारा अरबी, फारसी और उर्दू में महारत हासिल की। मात्र बारह वर्ष की आयु में मौलाना ने उर्दू में एक जर्नल शुरू करके हिंदुस्तान ही नहीं पूरे अरब क्षेत्र में अपनी काबिलियत का लोहा मनवाया। डिस्कवरी ऑफ इंडिया में नेहरू ने मौलाना आजाद के बारे में लिखा था-‘अल-हिलाल नामक जर्नल अत्यंत मेधावी, चौबीस वर्षीय युवक द्वारा प्रतिपादित किया गया था। उन्होंने काइरो के अल-अजहर विश्वविद्यालय से अपनी पढ़ाई की।’ बाद में मौलाना की मत्यु पर 24 फरवरी 1958 को संसद में बयान देते हुए नेहरू ने अपनी गलती को सुधारते हुए कहा, ‘मौलाना आजाद के विषय में एक भ्रम धीरे-धीरे पुख्ता होता गया कि वह काइरो गए और उन्होंने अल-अजहर विश्वविद्यालय में पढ़ाई की। मैं स्वयं गलतफहमी का शिकार हुआ। यहां मैं साफ कर देना चाहता हूं कि मौलाना पढ़ने के लिए कभी भी काइरो नहीं गए।’ यह नेहरू की विनम्रता थी जिसने सच्चाई को बेबाकी से स्वीकार करने की ताकत दी। 
नेहरू को सार्वजनिक क्षेत्र पर अत्यधिक विश्वास था। इसीलिए प्राथमिक, माध्यमिक से लेकर उच्च एवं व्यावसायिक शिक्षा तक सरकार ने अपने अधीन रखे। शिक्षा की गुणवत्ता बनाए रखने के साथ-साथ कोशिश हुई कि शिक्षा सस्ती रहे और सबको सुलभ रहे, परंतु सरकार की प्राथमिकता उच्च एवं व्यावसायिक शिक्षा के मुकाबले प्राथमिक शिक्षा पर कम रही। सबको शिक्षा देने का लक्ष्य तो रखा गया, लेकिन निम्न वर्ग तक शिक्षा प्रसारित न हो सकी। अस्सी के दशक के अंतिम वर्षो में ‘ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड’ ने समाज के सभी वर्गो का रुझान शिक्षा की ओर पैदा किया। नब्बे के दशक की शुरुआत उदारीकरण के दौर से हुई। पूंजी संकट से ग्रस्त सरकार ने सभी क्षेत्रों के साथ-साथ शिक्षा से भी अपने कदम पीछे खींच लिए। निजी क्षेत्र को शिक्षा में लाभ कमाने का अवसर दिखाई दिया। इन विद्यालयों में शिक्षा के स्तर की कमी थी। उसे पूरा करने के लिए कोचिंग सेंटर पटल पर उतरे। बेरोजगारों की सहायता से कोचिंग सेंटर शुरू हुए और आज उनकी भारत की नव पीढ़ी पर पकड़ है। उदारीकरण के तकरीबन ढाई दशक बाद शिक्षा में निजी क्षेत्र के आने के बाद शिक्षा महंगी हो गई। इसी तरह सरकारी विद्यालयों के स्तर में गिरावट आई, कोचिंग सेंटर का वर्चस्व बढ़ा और इस क्षेत्र में शिक्षा माफियाओं का दखल भी बढ़ा। इस वर्ष 15 अगस्त को लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्र के नौजवानों को हुनरमंद होने का आह्वान किया। स्किल डेवलपमेंट और स्किल्ड इंडिया प्रधानमंत्री का मिशन है। नौजवानों के लिए प्रधानमंत्री का दूसरा सपना ‘डिजिटल इंडिया’ का है। डिजिटल इंडिया का तात्पर्य है देश के प्रत्येक गांव में ब्रॉडबैंड की सेवाएं पहुंचाना और गांव में भी डिस्टेंस एजूकेशन के जरिये अच्छी शिक्षा देना और टेलीमेडिसिन के जरिये गरीबों को दवा मुहैया कराना। 
प्रधानमंत्री के सपनों को साकार करने के लिए मानव संसाधन मंत्रलय को आगे आना पड़ेगा और कम से कम प्रत्येक बच्चे को माध्यमिक स्तर तक शिक्षा देनी होगी। भारत में केवल 40 फीसद लोग ही माध्यमिक विद्यालयों तक पढ़ने पहुंच पाते हैं, जबकि सभी विकसित देशों में 95 फीसद से ज्यादा लोग माध्यमिक तक की शिक्षा ग्रहण करते हैं। इसके लिए वहां की सरकारें राष्ट्रीय आय का 5 फीसद या उससे अधिक खर्च करती हैं। तमाम विकासशील देशों ने भी शिक्षा पर खर्च बढ़ाकर अपनी जनसंख्या को शिक्षित किया है। इनमें समाजवादी देशों के अलावा विकासशील देश जैसे चिली, मलेशिया व श्रीलंका भी शामिल हैं। भारत अपनी आय का महज 3.3 फीसद शिक्षा पर खर्च करता है, जिसे बढ़ाना होगा। मोदी जनता की अपेक्षाओं पर खरा उतरने के लिए जी-जान से प्रयास कर रहे हैं। उनके सहयोगियों को भी कदम मिलाकर साथ चलना होगा। तभी विकसित भारत का निर्माण संभव होगा, जिसका ख्वाब उस छोटी सी बच्ची ने देखा था और अब्दुल कलाम को बताया था। अब भारत आगे बढ़ चुका है।  ...प्रो. सुबोध धवन                                                 dj            

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