चंडीगढ़ : प्रधानाचार्य के पद पर प्राध्यापकों का कोटा बढ़ाने को लेकर लेक्चरर और मास्टर वर्ग आमने-सामने है। मास्टर वर्ग एसोसिएशन और लेक्चरर एसोसिएशन के बीच पदोन्नति कोटे को लेकर मचे घमासान से शिक्षा विभाग भी असमंजस की स्थिति में है।
मास्टरों का मुख्य अध्यापक से प्रधानाचार्य पद पर पदोन्नति कोटा 33 से 20 और लेक्चरार का 67 से 80 प्रतिशत कर दिया गया है। मास्टर वर्ग एसोसिएशन के अध्यक्ष रमेश मलिक इसका विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि इस फैसले से मास्टरों सहित फीडर कैडर के लगभग 60 हजार शिक्षक प्रभावित होंगे। दूसरी तरफ हरियाणा स्कूल लेक्चरर एसोसिएशन के अध्यक्ष दयानंद दलाल और पूर्व अध्यक्ष किताब सिंह मोर ने मास्टर वर्ग के नकारात्मक दृष्टिकोण की कड़ी निंदा की है। दयानंद दलाल व किताब सिंह मोर ने कहा है कि मास्टर वर्ग 20-22 वर्षो से प्राध्यापकों के हकों को डकारता आ रहा है। शुरू से ही हेडमास्टर व प्राध्यापक की प्राचार्य पद पर पदोन्नति संख्या अनुपात में रही है। 1979 में प्राध्यापकों की कुल संख्या 534 व मुख्याध्यापकों की 1273 थी। इसका पदोन्नति अनुपात 25:75 था। इसके बाद 1988 में इसे संख्या अनुपात पर संशोधित कर 40:60 किया गया, इससे प्राध्यापकों की संख्या बढ़कर 1293 और हेडमास्टर की 1807 हो गई। उन्होंने बताया कि 1992 में इसे पुन: संशोधित कर 60:40 किया गया, चूंकि प्राध्यापकों की संख्या बढ़कर 2915 हो गई थी और मुख्याध्यापकों की संख्या 1849 थी। पिछले 20 वर्ष तक इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया गया, जिससे प्राध्यापकों की संख्या 12500 हो गई और मुख्याध्यापक 1607 रह गए। इस संख्या अनुसार पदोन्नति अनुपात 86:14 का बनता है, जबकि प्राध्यापक 86 प्रतिशत की बजाय 60 प्रतिशत पर ही पिसता रहा। वर्तमान में प्राध्यापकों की संख्या 33976 व हेडमास्टरों की संख्या केवल 1600 है। अनुपात के अनुसार व नियमानुसार प्राध्यापकों का कोटा 97 प्रतिशत होना चाहिए, लेकिन सरकार ने फिर भी 80:20 का अनुपात रखा है। dj
मास्टरों का मुख्य अध्यापक से प्रधानाचार्य पद पर पदोन्नति कोटा 33 से 20 और लेक्चरार का 67 से 80 प्रतिशत कर दिया गया है। मास्टर वर्ग एसोसिएशन के अध्यक्ष रमेश मलिक इसका विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि इस फैसले से मास्टरों सहित फीडर कैडर के लगभग 60 हजार शिक्षक प्रभावित होंगे। दूसरी तरफ हरियाणा स्कूल लेक्चरर एसोसिएशन के अध्यक्ष दयानंद दलाल और पूर्व अध्यक्ष किताब सिंह मोर ने मास्टर वर्ग के नकारात्मक दृष्टिकोण की कड़ी निंदा की है। दयानंद दलाल व किताब सिंह मोर ने कहा है कि मास्टर वर्ग 20-22 वर्षो से प्राध्यापकों के हकों को डकारता आ रहा है। शुरू से ही हेडमास्टर व प्राध्यापक की प्राचार्य पद पर पदोन्नति संख्या अनुपात में रही है। 1979 में प्राध्यापकों की कुल संख्या 534 व मुख्याध्यापकों की 1273 थी। इसका पदोन्नति अनुपात 25:75 था। इसके बाद 1988 में इसे संख्या अनुपात पर संशोधित कर 40:60 किया गया, इससे प्राध्यापकों की संख्या बढ़कर 1293 और हेडमास्टर की 1807 हो गई। उन्होंने बताया कि 1992 में इसे पुन: संशोधित कर 60:40 किया गया, चूंकि प्राध्यापकों की संख्या बढ़कर 2915 हो गई थी और मुख्याध्यापकों की संख्या 1849 थी। पिछले 20 वर्ष तक इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया गया, जिससे प्राध्यापकों की संख्या 12500 हो गई और मुख्याध्यापक 1607 रह गए। इस संख्या अनुसार पदोन्नति अनुपात 86:14 का बनता है, जबकि प्राध्यापक 86 प्रतिशत की बजाय 60 प्रतिशत पर ही पिसता रहा। वर्तमान में प्राध्यापकों की संख्या 33976 व हेडमास्टरों की संख्या केवल 1600 है। अनुपात के अनुसार व नियमानुसार प्राध्यापकों का कोटा 97 प्रतिशत होना चाहिए, लेकिन सरकार ने फिर भी 80:20 का अनुपात रखा है। dj
No comments:
Post a Comment
Note: only a member of this blog may post a comment.