शिक्षा विभाग नियम 134 ए के तहत निजी स्कूलों में नए शिक्षा सत्र में गरीब बच्चों को निश्शुल्क दाखिले के लिए आवेदन का एक और अवसर देने जा रहा है। 30 जनवरी से 15 फरवरी तक पहली से दस जमा दो कक्षा में दाखिले के लिए ऑनलाइन आवेदन लिए जाएंगे। आवेदन में विद्यार्थियों को अपनी प्राथमिकता के पांच स्कूलों के नाम दर्ज करने होंगे जिनमें से एक में दाखिला दिलाया जाएगा। शिक्षा मंत्री ने एक बार फिर भरोसा दिलाया है कि मुफ्त दाखिलों पर सरकार सकारात्मक रुख दिखाएगी। विभाग की नई पहल प्रशंसा के योग्य है बशर्ते प्रक्रिया आवेदन से आगे भी बढ़े। चिंताजनक पहलू यह है कि पिछले साल आवेदन करने वाले दस हजार बच्चों की सूची शिक्षा विभाग ने जारी ही नहीं की और दाखिले की आस में पूरा सत्र खराब हो गया। शिक्षा विभाग को एक बार फिर मंथन करना चाहिए कि पिछले वर्ष और नए सत्र की परिस्थितियों में क्या कुछ नयापन आया है, क्या उन अवरोधों का समाधान हो गया जिनकी वजह से सूची जारी नहीं की जा सकी? विभाग ने नियम में कुछ सुधार किया तो उसे सार्वजनिक तौर पर बताया जाना चाहिए। बहस का मुद्दा यह नहीं कि निजी स्कलों में 15 प्रतिशत बच्चों को दाखिला मिले या दस फीसद को, अहम पहलू यह है कि दाखिला तो मिले, इसके बाद उन्हें अनुकूल, सकारात्मक माहौल मिले, शिक्षा विभाग की विश्वसनीयता तो बहाल हो, सरकारी घोषणा मजाक न बने। पूरे देश ने विकास में हरियाणा का लोहा माना, विडंबना है कि शिक्षा के क्षेत्र में उतना ही पिछड़ापन है। राजकीय विद्यालय प्रतिस्पर्धात्मक स्तर पर निजी स्कूलों के सामने कहीं नहीं ठहर पा रहे। शिक्षा क्षेत्र का स्वरूप बदलने की सरकार की मुहिम का एक अहम अंग सभी को शिक्षा देने का संकल्प था और इसी के तहत गरीब बच्चों को सरकारी के साथ निजी स्कूलों में दाखिला दिलवाने के लिए देश में सबसे पहले नियम 134 ए लागू किया गया। दुर्भाग्यपूर्ण हकीकत यह रही कि सरकार अपनी ही घोषणा पर बार-बार यू-टर्न लेती रही। सीटें 15 से घटाकर दस प्रतिशत कर दी गईं, फिर उसमें भी ऐसा पेंच आया कि सरकारी अभियान के रथ का पहिया थम गया। अब सुनिश्चित करना होगा कि कथनी और करनी में अंतर न रहे, शिक्षा विभाग यदि आवेदन ले रहा है तो पूरी ईमानदारी के साथ दाखिला दिलाने का दायित्व भी निभाए। djedtr
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