नई दिल्ली : विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) की एकेडमिक
परफार्मेस इंडेक्स (एपीआइ) स्कीम देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों में
कार्यरत शिक्षकों के भविष्य पर संकट के बादल लेकर आई है। इस स्कीम के लागू
होने से सीधे-सीधे शिक्षकों पर न सिर्फ कार्य का बोझ बढ़ेगा, बल्कि इसके
प्रभाव से विभिन्न संस्थानों में अध्यापन कार्य में जुटे तदर्थ शिक्षकों की
छुट्टी तय है।
एक अनुमान के अनुसार, अकेले दिल्ली विश्वविद्यालय
(डीयू) में इस स्कीम के लागू होने पर करीब 3000 तदर्थ शिक्षकों की छुट्टी
हो जाएगी। यूजीसी की ओर से इस संबंध में जारी तीसरे संशोधन के गजट
नोटिफिकेशन के अनुसार अब विश्वविद्यालय में अस्सिटेंट प्रोफेसर के लिए 18
घंटे थ्योरी और छह घंटे ट्यूटोरियल प्रति सप्ताह अनिवार्य होगा। इसी तरह
एसोसिएट प्रोफेसर के लिए 16 घंटे थ्योरी और छह घंटे टयूटोरियल और प्रोफेसर
के लिए 14 घंटे थ्योरी और छह घंटे ट्यूटोरियल प्रति सप्ताह अनिवार्य होगा।
पूर्व की व्यवस्था में हर स्तर पर दो घंटे की कमी थी और ट्यूटोरियल भी उसी
अवधि का हिस्सा था, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। यानी इस आधार पर शिक्षकों का
वर्कलोड बढ़ाना कॉलेज प्रशासन की मजबूरी होगी। ऐसे में अभी काम कर रहे
तदर्थ शिक्षकों की छुट्टी होना तय है। डीयू के श्री वेंकटेश्वर कॉलेज में
केमिस्ट्री के शिक्षक डॉ. संजय बत्र का कहना है कि इस मामले में विज्ञान
शिक्षकों की स्थिति और भी अधिक मुश्किल होने जा रही है। इन विषयों में
थ्योरी से अधिक समय प्रैक्टिकल के लिए निर्धारित रहता है। नए नियमों के
अंतर्गत सप्ताह में एक प्रोफेसर को 12 घंटे के प्रैक्टिकल के लिए 24 घंटे
का समय देना होगा। इस नियम के चलते केमिस्ट्री, फिजिक्स, बॉयोलॉजी, बॉटनी,
जूलॉजी और लाइफ साइंसेस के प्रोफेसर सीधे तौर पर प्रभावित होंगे। यूजीसी के
फरमान को लेकर एकेडमिक्स फॉर एक्शन एंड डेवलपमेंट के अध्यक्ष डॉ. एएन
मिश्र ने कहा कि इस बदलाव को पदोन्नति का आधार बनाया गया है। ऐसे में
शिक्षकों के लिए इसका पालन करना अनिवार्य बन जाता है। dj
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