चंडीगढ़/तोशाम : हरियाणा में तैनात 4073 अतिथि अध्यापकों को आखिर जाना ही होगा। पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट की खंडपीठ ने अतिथि अध्यापकों के मामले में चल रहे तदर्थवाद के अध्याय आखिर बंद कर दिया। खंडपीठ ने इस मामले में यहां तक तल्ख्ा टिप्पणी की कि इस सारे मामले में सरकार और अतिथि अध्यापकों की मिलीभगत स्पष्ट हो गई है।
खंडपीठ ने कहा कि अतिथि अध्यापकों की नियुक्ति 2005-06 में की गई थी लेकिन नियमित अध्यापकों की भर्ती होने के बावजूद इनकी सेवाओं को समाप्त नहीं किया गया। ‘यहां तक की जिन अतिथि अध्यापकों की सेवाएं समाप्त की गई थी, दो-तीन महीने के बाद उन्हें फिर से नौकरी पर ले लिया गया।’ खंडपीठ ने कहा कि यह बात साफ हो गई है कि नियमित भर्तियां न करके इस कोर्ट की ओर से दिए गए आदेश काे टाल दिया गया। अतिथि अध्यापकों को दूसरे पदों पर एडजस्ट किया गया।
भाजपा सरकार बनने के बाद शिक्षा विभाग की ओर से अतिथि अध्यापकों को सरप्लस बताकर विभाग से निकाल दिया गया था, जिसके बाद पूरे प्रदेश में स्कूलों पर ताले जड़े गए और महेन्द्रगढ़ में अतिथि अध्यापकों ने 2 महीने तक आंदोलन चलाया गया। इसके बाद प्रभावित अतिथि अध्यापकों को 31 मार्च 2016 तक वापस नौकरी पर ले लिया गया। 31 मार्च 2016 को फिर उक्त अतिथि अध्यापकों को जिसमें गणित, एसएस और हिन्दी अध्यापक शामिल हैं, को घर का रास्ता दिखाया गया, जिसके खिलाफ अतिथि अध्यापकों ने हाईकोर्ट की डबल बेंच में याचिका दायर की। जिस पर हाईकोर्ट की डबल बेंच ने अप्रैल माह के आखिरी दिनों में लगातार दो दिन सुनवाई की और फिर फैसला सुरक्षित रखा, जिसका बेंच की ओर से शुक्रवार को फैसला सुनाया गया, जिसमें अतिथियों की याचिका को खारिज कर दिया। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने 11 नवंबर 2016 तक नियमित भर्ती करके रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा। और उसी दिन अतिथियों को हटाने के बारे में भी अनुपालना रिपोर्ट भी मांगी।
2005 में हुई नियुक्ति
दिसंबर 2005 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने राजकीय स्कूलों में अध्यापकों की कमी को पूरा करने के लिए शिक्षकों को भर्ती किया था, जिन्हें अतिथि अध्यापक का नाम दिया गया, तब सरकार व विभाग द्वारा भर्ती के जो मापदंड तय किए गए थे, अतिथि अध्यापकों ने उन्हें पूरा करते हुए कार्यभार संभाला, ऐसे में विभाग व सरकार द्वारा तय किए गए भर्ती के मापदंडों का खामियाजा उन्हें क्यों भुगतना पड़ रहा है। dt
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