नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने पूरी तरह साफ कर दिया है कि देशभर के मेडिकल
और डेंटल कालेजों में दाखिला सिर्फ नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट
(नीट) के जरिये ही होगा। इसके साथ ही नीट-1 में बैठ चुके छात्रों को नीट-2
में भी बैठने की छूट होगी। लेकिन ऐसे में वे पहली परीक्षा के नतीजे का लाभ
नहीं ले सकेंगे।
एमबीबीएस और बीडीएस कोर्स में दाखिले के लिए होने वाली
साझा परीक्षा के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को अंतिम फैसला सुना
दिया। जस्टिस अनिल आर दवे की अध्यक्षता वाली पीठ ने राज्यों की अपने स्तर
पर परीक्षा करवाने की मांग को पूरी तरह से खारिज कर दिया। इसने कहा कि
चूंकि इस मामले में केंद्र और समवर्ती सूची के प्रावधानों का टकराव हो रहा
है, इसलिए केंद्रीय सूची के प्रावधानों को ही प्रभावी माना जाएगा। इस तरह
सिर्फ केंद्रीय परीक्षा ही पर्याप्त होगी। कोर्ट ने कहा कि प्रथम दृष्टया
हमें नहीं लगता कि नीट राज्यों या निजी संस्थानों के अधिकार में किसी तरह
का हस्तक्षेप है। किसी तरह के आरक्षण के विशेष प्रावधान का इस परीक्षा से
कोई वास्ता नहीं है। यह सिर्फ पात्रता साबित करने के लिए ली जाने वाली
परीक्षा है। 1आरक्षण के प्रावधान इस परीक्षा के तहत भी अपनी जगह आसानी से
लागू किए जा सकते हैं। नीट-1 में बैठ चुके छात्रों पर कोर्ट ने कहा कि इस
परीक्षा में बैठते समय कुछ छात्र यह सोच रहे होंगे कि वे सिर्फ 15 फीसद
सीटों के लिए ही परीक्षा दे रहे हैं और दूसरी प्रवेश परीक्षाओं में भी
उन्हें मौका मिलेगा। इसलिए ऐसे छात्रों को ध्यान में रखते हुए नीट-1 में
नहीं बैठ पाए छात्रों के साथ ही उन छात्रों को भी दोबारा मौका दिया जाएगा,
जिन्हें लगता है कि उन्हें तैयारी के लिए पूरा समय नहीं मिल सका था।
हालांकि, ऐसे सभी उम्मीदवारों को नीट-1 की अपनी उम्मीदवारी को समाप्त मानना
होगा। dj
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