इस मामले में राजकीय वरिष्ठ
माध्यमिक स्कूल मुलाना के प्रिंसिपल का तर्क था कि अपने स्कूल के बच्चों का
दाखिला करना उनकी मजबूरी है, लेकिन वे किसी अन्य स्कूल से फेल होकर आए
बच्चों का दाखिला करने को लेकर बाध्य नहीं हैं। वहीं उनका ये भी कहना था कि
स्कूल में स्टाफ भी पूरा नहीं है। मुलाना निवासी अंकुर, गोमशी, अंकित
प्रवेश ने बताया कि वह मुलाना के एक निजी स्कूल में पढ़ाई कर रहे थे, लेकिन
इस बार वह दसवीं में फेल हो गए। स्कूल की ज्यादा फीस एवं परीक्षा परिणाम
सही आने के कारण अब उनके अभिभावक उनका दाखिला सरकारी स्कूल में करवाना
चाहते हैं और इसी के चलते वह शुक्रवार को मुलाना के सरकारी स्कूल में
दाखिला लेने गए थे, लेकिन स्कूल प्रिंसिपल ने उन्हें दाखिला देने से मना कर
दिया।
विज्ञापन के जरिए दर्शाई थी विशेषताएं:
कुछ समय पहले मुलाना के राजकीय
वरिष्ठ माध्यमिक स्कूल प्रिंसिपल ने एक विज्ञापन जारी किया था और उस
विज्ञापन में स्कूल की विशेषताएं दर्शाई थी। बच्चों को इस स्कूल में दाखिला
देने हेतु प्रेरित किया था। लेकिन अब जब बच्चे इस स्कूल में दाखिला लेने
रहे स्कूल प्रिंसिपल स्टाफ होने की बात कह कर उनका दाखिला करने से मना कर
रहे हैं।
"बच्चों को दाखिला देने से मना नहीं किया जा सकता। स्कूल में
स्टाफ का कम होना अलग बात है। मैं इस बारे में मुलाना स्कूल के प्रिंसिपल
से बात करूंगी और समस्या का समाधान किया जाएगा।"-- वीनाकुमारी, खंड शिक्षा
अधिकारी, बराड़ा।
"यह बच्चे दूसरे स्कूल से फेल होकर आए हैं। इन्हें
दाखिले के लिए हम मना कर सकते हैं। स्कूल में स्टाफ की भी काफी कमी है। इन
बच्चों के अभिभावक मेरे पास आए थे, मैने उन्हें संतुष्ट कर दिया है।"-- डाॅ.पवन गुप्ता, प्रिंसिपल, राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक स्कूल, मुलाना।
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