हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड का दसवीं का परिणाम उलझन में फंस गया। 50 फीसद से अधिक परीक्षार्थी पास हो गए लेकिन परीक्षा परिणाम देने में बोर्ड फेल हो गया। मेरिट सूची ने ऐसी उलझन बढ़ाई कि टॉप में रही फतेहाबाद की बेटी खिसककर पांचवें स्थान पर पहुंच गई और सिरसा का बेटा अव्वल हो गया। हालांकि बोर्ड ने कुछ ही घंटों में सूची संशोधित कर दी लेकिन अफसरों की लापरवाही ने कई छात्रों व अभिभावकों को मायूसी व चिंता के क्षण दे दिए। परीक्षा फल बच्चों के लिए साल भर की मेहनत व लगन का परिणाम होता है। इसका इंतजार बच्चों के साथ-साथ पूरे परिवार व स्कूल को भी रहता है। भावनाओं से खिलवाड़ व लापरवाही बरतने वाला कड़ी सजा का भागी होना चाहिए। इस मामले में बोर्ड ने कार्रवाई करते हुए दो अधिकारियों को निलंबित भी कर दिया है लेकिन निलंबन से इतिश्री नहीं की जा सकती। अब इनके खिलाफ विभागीय जांच तो होनी ही चाहिए, साथ ही बोर्ड को पूरे प्रकरण की जांच करवाकर सच सामने लाना चाहिए।
बोर्ड निजी एजेंसी से परिणाम तैयार करवाता है और उसके बाद अन्य एजेंसियों से क्रॉस चेक भी करवाया जाता है। कई स्तर की सतर्कता के बावजूद अगर परिणाम इस तरह का रहे तो निश्चित तौर पर पूरी व्यवस्था पर सवाल उठना लाजिमी है। बोर्ड ने भले ही यह कहकर मामला निपटाने का प्रयास किया हो कि केवल टॉप लिस्ट में गड़बड़ी थी लेकिन वास्तविकता में सबकुछ ठीक नहीं है। अभी भी कई बिुंदओं को दरकिनार किया गया है। पहले घोषित परिणाम में हिसार के एक छात्र के प्राप्त अंकों में हंिदूी के अंक ही नहीं जोड़े गए थे। ऐसे ही जिलों की टॉपर सूची में कई गड़बड़ियां सामने आईं। बाद में इस सूची को बोर्ड ने वापस ले लिया। ऐसे में परिणाम तैयार करने वाली एजेंसियों को भी कठघरे में खड़ा किया जाना चाहिए। सवाल और भी हैं और शिक्षा बोर्ड को इन सवालों के जवाब तलाशने होंगे। क्योंकि यह विषय उन एजेंसियों से अधिक शिक्षा बोर्ड की साख से जुड़ा है।
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