** चिंता : हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड जैसी नियामक संस्थाओं में राजनीतिक हस्तक्षेप व आला अधिकारियों की उदासीनता से लाखों शिक्षार्थियों पर संकट
** 75 फीसद परिणाम भी अभी दूर की कौड़ी
फतेहाबाद : हालांकि शिक्षा की नियामक संस्थाओं का राजनीतिकरण नई बात नहीं रह
गई है। हर सरकार में विश्वविद्यालय अथवा शिक्षा बोर्ड में राजनीति का
समावेश सहूलियत के हिसाब से होता रहा है। नतीजा, सुशिक्षित समाज जैसे बेहद
संवेदनशील सरोकार पर संक्रमण की छाया .. लाखों भविष्य के साथ कतई खिलवाड़
..।
लेकिन इस तो हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड ने बेपरवाही का इतिहास ही रच दिया। ऐसा पहली बार हुआ है कि घोषित परिणाम वापस लेने पड़े हैं। बोर्ड के इस ऐतिहासिक कृत्य का खामियाजा फतेहाबाद अथवा कैथल ही नहीं पूरे प्रदेश के हजारों छात्र-छात्रओं को भुगतना पड़ा है। संशोधित परीक्षा परिणाम में फेल घोषित होने से निराश मन धरना, प्रदर्शन व हंगामेपर उतारू है। यहां, संजीदा सवाल-क्या इस बोर्ड से सुनहरे भविष्य की आस की जा सकती है? परीक्षाओं तक सिमटा यह शिक्षा बोर्ड अपनी कार्यप्रणाली को लेकर ऐसे अनेक सवालों से घिरता जा रहा है। सो, इस बोर्ड से तो भविष्य के अक्षर धुंधले ही दिखाई देते हैं। बोर्ड की हास्यास्पद कार्यप्रणाली की तकाजा है कि तकरीबन तीन दशक से शारीरिक शिक्षा की किताबें न तो प्रकाशित हुईं और न ही वितरित। शिक्षक अनूप कुमार कहते हैं कि बच्चों को कीमती गाइड व अन्य सहायक पुस्तकों का सहारा लेना पड़ता है। सोनिया, अंतिका, रोहित, देवेश को आज भी टेक्स्ट बुक का बेसब्री से इंतजार है। शिक्षा की गुणवत्ता का ठेकेदार हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड की लापरवाही का आलम यह कि पाठ्यक्रमों का ब्लू-¨पट्र जारी करने में भी महीनों बीत जाते हैं। हद तो यह कि निदेशालय से सामंजस्य की कमी के चलते सत्र के दो माह बीत जाने के बावजूद स्कूलों में किताबें नहीं हैं। इन मामलों में केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड इनसे कहीं आगे रहता है। हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड की कुछ और भी तस्वीरें हैं जो कतई धुंधली हैं। मसलन, लड़कियों की पहुंच से दूर रहता है परीक्षा केंद्र .. वीं सदी में भी बच्चे जमीन पर बैठकर परीक्षाएं देते हैं .. आदि। इन तमाम तथ्यों के आलोक में ही शिक्षाविद् कहते हैं कि यह शिक्षा बोर्ड नहीं, बल्कि परीक्षा बोर्ड बनकर रह गया है। सो, इस बोर्ड से भविष्य के अक्षर स्पष्ट देखने की कल्पना भी बेमानी है।
लेकिन इस तो हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड ने बेपरवाही का इतिहास ही रच दिया। ऐसा पहली बार हुआ है कि घोषित परिणाम वापस लेने पड़े हैं। बोर्ड के इस ऐतिहासिक कृत्य का खामियाजा फतेहाबाद अथवा कैथल ही नहीं पूरे प्रदेश के हजारों छात्र-छात्रओं को भुगतना पड़ा है। संशोधित परीक्षा परिणाम में फेल घोषित होने से निराश मन धरना, प्रदर्शन व हंगामेपर उतारू है। यहां, संजीदा सवाल-क्या इस बोर्ड से सुनहरे भविष्य की आस की जा सकती है? परीक्षाओं तक सिमटा यह शिक्षा बोर्ड अपनी कार्यप्रणाली को लेकर ऐसे अनेक सवालों से घिरता जा रहा है। सो, इस बोर्ड से तो भविष्य के अक्षर धुंधले ही दिखाई देते हैं। बोर्ड की हास्यास्पद कार्यप्रणाली की तकाजा है कि तकरीबन तीन दशक से शारीरिक शिक्षा की किताबें न तो प्रकाशित हुईं और न ही वितरित। शिक्षक अनूप कुमार कहते हैं कि बच्चों को कीमती गाइड व अन्य सहायक पुस्तकों का सहारा लेना पड़ता है। सोनिया, अंतिका, रोहित, देवेश को आज भी टेक्स्ट बुक का बेसब्री से इंतजार है। शिक्षा की गुणवत्ता का ठेकेदार हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड की लापरवाही का आलम यह कि पाठ्यक्रमों का ब्लू-¨पट्र जारी करने में भी महीनों बीत जाते हैं। हद तो यह कि निदेशालय से सामंजस्य की कमी के चलते सत्र के दो माह बीत जाने के बावजूद स्कूलों में किताबें नहीं हैं। इन मामलों में केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड इनसे कहीं आगे रहता है। हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड की कुछ और भी तस्वीरें हैं जो कतई धुंधली हैं। मसलन, लड़कियों की पहुंच से दूर रहता है परीक्षा केंद्र .. वीं सदी में भी बच्चे जमीन पर बैठकर परीक्षाएं देते हैं .. आदि। इन तमाम तथ्यों के आलोक में ही शिक्षाविद् कहते हैं कि यह शिक्षा बोर्ड नहीं, बल्कि परीक्षा बोर्ड बनकर रह गया है। सो, इस बोर्ड से भविष्य के अक्षर स्पष्ट देखने की कल्पना भी बेमानी है।
बोर्ड के चेयरमैन डॉ. जगबीर सिंह से दो टूक
सवाल : खासकर, टॉपर के संदर्भ में
फेरबदल के कारण दसवीं का परिणाम ऐतिहासिक रहा। बोर्ड की फजीहत पर क्या
कहते हैं?
जवाब : इसमें कोई दो राय नहीं कि टॉपर का मामला था। लेकिन
परसेंटेज में तो कोई फर्क नहीं आया। कंप्यूटर की गलती थी। बोर्ड इस मामले
में संवेदनशील है। दो लोगों को सस्पेंड किया गया। हालांकि कर्मचारियों की
हड़ताल के बाद उन्हें बहाल कर दिया गया। फजीहत जैसी कोई बात नहीं है।
सतर्कता बरती जाएगी।
सवाल : क्या नैतिकता के आधार पर बोर्ड के आला
अधिकारियों को इस्तीफा देने की मांग उचित नहीं है?
जवाब : बोर्ड के सचिव या
चेयरमैन का इस्तीफा समाधान
नहीं है।
सरकारों
की अपनी विचारधारा
कांग्रेस सरकार के अंतिम दिनों में डॉ. केसी भारद्वाज
हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड के चेयरमैन थे। जब भाजपा सरकार आई तो उनकी
जगह डॉ. जगबीर सिंह ने ले ली।वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े हैं।
No comments:
Post a Comment
Note: only a member of this blog may post a comment.