चंडीगढ़ : सरकारी स्कूलों में बच्चों का लर्निग लेवल और ग्रेडिंग स्तर बढ़ने
लगा है। नो डिटेंशन पॉलिसी के कारण तीन साल पहले ग्रेडिंग लेवल 40 फीसद तक
के न्यूनतम स्तर पर पहुंचने के बाद अब यह फिर से 60 फीसद तक पहुंच गया है।
सरकार की कोशिश अगले साल तक इसे 80 फीसद तक ले जाने की है ताकि सरकारी
स्कूलों के बच्चे निजी स्कूलों से प्रतिस्पर्धा कर सकें। सप्रंग सरकार में
8वीं कक्षा तक बच्चों को फेल नहीं करने की नीति के काफी प्रतिकूल परिणाम
निकले।
बच्चों के लिए लक्ष्य निर्धारित न होने से उनका ध्यान पढ़ाई से
हटा, जिसका असर बोर्ड परीक्षाओं में दिखा। विधानसभा में भी यह मुद्दा कई
बार उठा, जिसके बाद प्रदेश में सत्तारूढ़ भाजपा ने नीतियों में बदलाव के
साथ बुनियादी ढांचे को दुरुस्त करना शुरू कर दिया। नए स्कूल-कॉलेज खोलने के
साथ ही जरूरत के अनुसार कई स्कूलों को अपग्रेड कर विद्यार्थियों को गांव
के नजदीक ही शिक्षा सुनिश्चित की गई।
बच्चों का लर्निग लेवल जांचने के लिए
हर माह परीक्षा का सिस्टम कारगर साबित हुआ। मासिक लर्निग लेवल टेस्ट से
बच्चों की कमियों का खुलासा होने के बाद शिक्षकों को इन्हें दूर करने की
हिदायत है। इससे शिक्षकों के पढ़ाने के तरीके के भी जांच हो जाती है। यही
कारण है कि बच्चों में 40 फीसद तक सिमटा ग्रेडिंग लेवल अब 60 फीसद तक पहुंच
गया है।
गुणात्मक शिक्षा चुनौती
"आज सरकार के लिए गुणात्मक शिक्षा और रोजगार बड़ी चुनौती है। पूर्व
की सरकार में शुरू की गई आठवीं तक नो डिटेंशन पॉलिसी बच्चों की पढ़ाई पर
भारी पड़ी है। जब तक किसी विद्यार्थी को लक्ष्य नहीं दिया जाएगा, तब तक
पढ़ाई के कोई मायने नहीं। हमने शिक्षा प्रणाली में सुधार के लिए कई कदम
उठाए। हर महीने टेस्ट लिए जाते हैं जिसमें 22 लाख छात्र शामिल हुए। हमारी
कोशिश है कि अगले साल तक छात्रों का ग्रेडिंग स्तर 80 फीसद तक ले जाया जाए
ताकि शिक्षा में गुणात्मक सुधार कर छात्रों को रोजगारपरक बनाया जा सके।"-- मनोहर लाल, मुख्यमंत्री।
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