नई दिल्ली : अनुसूचित जाति व जनजाति श्रेणी को वर्ष 1992 में पांच वर्ष के
लिए प्रमोशन में मिले आरक्षण को आगे बढ़ाए जाने के सरकारी आदेश को दिल्ली
हाई कोर्ट ने रद कर दिया है। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल और
न्यायमूर्ति सी हरिशंकर की खंडपीठ ने कार्मिक और प्रशासनिक विभाग (डीओपीटी)
द्वारा 13 अगस्त 1997 को जारी ज्ञापन को रद किया।
स्वयंसेवी संस्था ऑल
इंडिया इक्वेलिटी फोरम सहित अन्य याचिकाकर्ताओं ने ज्ञापन के बाद इस श्रेणी
में किए गए प्रमोशन को रद करने की मांग की थी। इस पर हाई कोर्ट ने कहा कि
सुप्रीम कोर्ट अपने अंतरिम आदेश में पहले ही कह चुका है कि ज्ञापन के बाद
जो प्रमोशन किए गए हैं, उन पर अंतिम फैसला हाई कोर्ट लेगा। पांच साल के बाद
भी प्रमोशन में आरक्षण का नियम बढ़ाया जा रहा है। इस पर ध्यान भी नहीं
दिया गया कि अनुसूचित जाति एवं जनजाति के कर्मचारियों के सही प्रतिनिधित्व
के संबंध में कोई आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। अपर्याप्त प्रतिनिधित्व को लेकर
अनिवार्य आंकड़े एकत्रित किए बिना अनुसूचित जाति और जनजाति को मिलने वाला
आरक्षण का लाभ पिछड़ेपन के विचार के खिलाफ है। ऐसा करना संविधान के अनुछेद
16(1) और 335 का उल्लंघन करना है। लिहाजा इसे रद किया जाता है। 1992 में
सुप्रीम कोर्ट की नौ जजों की खंडपीठ ने इंदिरा साहनी मामले की सुनवाई के
दौरान अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लिए पांच साल तक प्रमोशन में आरक्षण की
व्यवस्था की थी।
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