** प्रदेश में शिक्षकों के कितने पद रिक्त, उनको कब तक भरा जाएगा
चंडीगढ़ : हटाए गए अतिथि अध्यापकों को बार-बार समायोजित करने पर पंजाब एवं
हरियाणा हाई कोर्ट ने प्रदेश सरकार से पूछा है कि अतिथि अध्यापकों को हटाने
का आदेश हाई कोर्ट ने दिया था। उसका पालन क्यों नहीं किया गया? साथ ही
सवाल किया कि जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ क्यों न अवमानना की कार्रवाई
की जाए? सिरसा के अहमदपुर निवासी नानक चंद की तरफ से दायर इस याचिका पर हाई
कोर्ट अब 18 अगस्त को सुनवाई करेगा।
पीठ ने सुनवाई के दौरान हरियाणा
शिक्षा विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव को निर्देश दिया कि वह शपथ पत्र दायर
कर कोर्ट को बताएं कि प्रदेश में शिक्षकों के कितने पद रिक्त है और उनको कब
तक भरा जाएगा। याचिका में आरोप लगाया गया है कि बगैर विधिसम्मत प्रक्रिया
अपनाए बार-बार अतिथि अध्यापकों को समायोजित किया जा रहा है। याची ने हाई
कोर्ट व सुप्रीम कोर्ट में तिलक राज केस का हवाला दिया है, जिसके मुताबिक
अतिथि अध्यापकों का समायोजन विधिसम्मत नहीं है। याची के अधिवक्ता जगबीर
मलिक ने पीठ को बताया कि समायोजन नीति में ही स्पष्ट उल्लेख है कि हाई
कोर्ट व सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के मद्देनजर किसी भी अतिथि अध्यापक को
समायोजित करना बाध्यकारी नहीं है। यह सिर्फ खाली पदों को भरने की तात्कालिक
व्यवस्था है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा 30 मार्च 2012 को दिए गए फैसले के
अनुसार किसी भी सेवामुक्त अतिथि अध्यापक को फिर से नियुक्ति नहीं दी जा
सकती।
याचिका में कहा गया है कि सरकार नियमित शिक्षकों की सीधी भर्ती में
देरी कर रही हैं। जब भी किसी अतिथि अध्यापक को कोर्ट के आदेशों के अनुपालन
में हटाया जाता है तो विभाग उसको फिर से समायोजित कर देता है, जो सुप्रीम
कोर्ट के 30 मार्च 2012 को दिए आदेश की अवमानना है।
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