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Monday, 15 September 2014

सरकारी स्कूलों में कंप्यूटर शिक्षकों की नियुक्ति मामले में बड़ा विरोधाभास

सरकारी स्कूलों में कंप्यूटर शिक्षकों की नियुक्ति के मामले में दिख रहा विरोधाभास न केवल चिंतनीय है, बल्कि सरकार की कार्यप्रणाली पर भी सवाल खड़ा कर रहा है। यह नीतिगत कमी सरकार की साख को क्षरित कर रही है। यह कितनी विसंगति है कि सरकार जिन कंपनियों को उनके काले कारनामे के लिए काली सूची में डालती है, उन्हीं पर कंप्यूटर शिक्षकों की नियुक्ति की जिम्मेदारी भी डाल देती है। यह कैसे उम्मीद की जा सकती है कि ये कंपनियां कंप्यूटर शिक्षकों के साथ न्यायपूर्ण व्यवहार करेंगी? आखिर कंपनियां कैसे भूल सकती हैं कि इन कंप्यूटर शिक्षकों ने उनके खिलाफ लंबा आंदोलन चलाया। अपने धरना-प्रदर्शन व घेराव से सरकार को एक तरह से मजबूर कर दिया कि वह कार्रवाई करे। लंबी कवायद के बाद मुख्यमंत्री के हस्तक्षेप से इनके खिलाफ कार्रवाई हो सकी। दरअसल, इन कंपनियों के प्रति शिक्षा विभाग का मोह शुरू से ही सवाल खड़ा करने वाला है। इनके खिलाफ तमाम शिकायतें आईं, लेकिन विभाग ने अनसुनी कर दी। लाचार और परेशान होकर कंप्यूटर शिक्षक सड़क पर उतरे तब शिक्षा विभाग के कान में जू रेंगा, लेकिन फिर भी कंपनियों पर अंकुश लगाने को कोई तैयार नहीं था। काली सूची में डालने के बाद इन कंपनियों द्वारा 1000 कंप्यूटर शिक्षकों की नियुक्ति कराना कई सवाल पैदा कर रहा है। आखिर इस तथ्य की अनदेखी कैसे की जा सकती है कि ये निजी कंपनियां पहले से स्कूलों में तैनात 2622 शिक्षकों को छह महीने से वेतन नहीं दे पाई हैं। इन्होंने शिक्षा विभाग के साथ हुए समझौते का उल्लंघन कर 24-24 हजार की सिक्योरिटी राशि वसूली, जिसे वे सरकार के आदेश के बावजूद लौटाने में दिलचस्पी नहीं दिखा रहीं। उल्टा नव नियुक्त शिक्षकों से भी कंपनियां 24 हजार रुपये की सिक्योरिटी वसूल रही हैं। लगभग साढ़े आठ सौ शिक्षकों ने तो सिक्योरिटी राशि देकर ज्वाइनिंग के लिए हामी भर दी है, जबकि डेढ़ सौ शिक्षक इसे न देने पर अड़े हुए हैं। इसलिए कंपनियों ने उनकी ज्वाइनिंग रोक दी है।
क्या सरकार नीतिगत स्तर पर इतनी कमजोर है कि संदेह के दायरे में आई कंपनियों को अलग कर इन शिक्षकों की भर्ती नहीं करा सकती थी। वह एक ऐसी व्यवस्था बनाती जो न केवल सुविधाजनक होता बल्कि विश्वास भी जगाता। इससे कंप्यूटर शिक्षकों को न्याय मिलता और सबसे बढ़कर सरकार की साख मजबूत होती। दुर्भाग्य से इस स्तर की चिंता नहीं दिखती। दूसरे विभागों की छोड़ दें तो शिक्षा के मामले में ही सरकार ने कई जगह अदूरदर्शिता का उदाहरण दिया है।                                                djedtrl

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