चंडीगढ़ : पूर्व कांग्रेस सरकार के एक और फैसले को प्रदेश की ‘मनो’ सरकार ने पलट दिया है। प्रदेश के सरकारी स्कूलों में विद्यार्थियों का ड्रॉप-आउट कम करने के मकसद से प्राथमिक पाठशालाओं में जिन बचपनशालाओं को खोला गया था उन्हें राज्य सरकार ने बंद कर दिया है। हरियाणा स्कूल शिक्षा परियोजना परिषद के स्टेट प्रोजेक्ट डायरेक्टर आलोक वर्मा ने एक पत्र जारी कर तुरंत प्रभाव से सभी बचपनशालाओं को बंद करने के आदेश दिए।
बचपनशालाओं में मुख्य रूप से उन गरीब एवं कामकाजी परिवारों के बच्चे आते थे, जो प्राइवेट प्ले स्कूलों या क्रेच सेंटरों की फीस नहीं दे सकते। बेशक, इस योजना काे चौटाला सरकार के कार्यकाल में 2004 में शुरू किया गया था लेकिन हुड्डा सरकार के सत्ता में आने के बाद बचपनशालाओं को बढ़ावा दिया गया।
वर्तमान में प्रदेशभर में 300 से अधिक बचपनशालाएं चल रही थीं। जब बचपनशालाएं खोली गई थीं तो इनकी संख्या 1000 से भी ज्यादा थी। हुड्डा सरकार ने करीब 700 बचपनशालाओं को 2011 में आंगनवाड़ी केंद्रों में मर्ज कर दिया था। बचपनशालाओं में सरकार की ओर से बच्चों के खेलने के लिए खिलौने रखे गए थे। यही नहीं, उन्हें उठने-बैठने व बातचीत करने का सलीका सिखाया जाता था। आमतौर पर 3 से 5 वर्ष तक की उम्र के बच्चे इन बचपनशालाओं में आ रहे थे।
सरकार की ओर से बचपनशालाओं में बच्चों की केयर के लिए एक वॉलंटियर और एक हेल्पर नियुक्त की गई थी। वॉलंटियर को 2000 रुपये और हेल्पर को 800 रुपये मासिक मानदेय दिया जाता था। सरकार ने इन सभी बचपनशालाओं को बिना किसी नोटिस दिए ही तुरंत प्रभाव से बंद कर दिया है। यही नहीं, इनमें कार्यरत वॉलंटियर और हेल्परों को भी उनके काम से हटा दिया गया है। हरियाणा राजकीय अध्यापक संघ ने सरकार के इस फैसले पर कड़ी आपत्ति जताई है। संघ के मुताबिक सरकार का फैसला सही नहीं है और इससे इन बचपनशालाओं में कार्यरत वर्कर बेरोजगार हो गई हैं।
इसलिए किया गया था शुरू
सरकार ने 2002-2003 के दौरान एक सर्वे किया था। इस सर्वे में यह बात सामने आई कि पहली से पांचवीं कक्षा तक के विद्यार्थी नाम लिखवाने के बाद भी स्कूल में इसलिए नहीं आते क्योंकि पीछे से उनके छोटे भाई-बहन घर में अकेले रहते हैं। यह समस्या उन परिवारों की थी, जिनमें माता-पिता दोनों ही कामकाजी हैं। आमतौर पर मजदूरों एवं गरीब परिवारों के साथ यह दिक्कत थी। ऐसे में सरकार ने 2004 में बचपनशालाएं खोलीं ताकि पहली से पांचवीं तक के विद्यार्थी अपने छोटे भाई या बहन को भी अपने साथ स्कूल में ला सकें। इससे वे पढ़ सकते थे और उनके भाई-बहन इन बचपनशालाओं में खेल सकते थे। इस दौरान उनकी संभाल यहां तैनात वर्कर की होती थी। इससे बड़ी संख्या में महिलाओं को रोजगार मिला हुआ था। हालांकि इस फैसले से रोजगार छिन गया है।
280 महिलायें बेरोजगार, एसपीडी कार्यालय पर आज प्रदर्शन
पंचकूला : प्राइमरी स्कूलों में चलाई जा रही करीब 140 बचपनशालाओं को तुरंत प्रभाव से बंद करने से 10-10 सालों से कार्यरत 140 वर्कर और इतनी ही हेल्पर बेरोजगार हो गई हैं। बचपनशाला वर्कर व हेल्पर यूनियन ने इस फैसले के खिलाफ 16 जनवरी को पंचकूला में एसपीडी कार्यालय पर प्रदर्शन करने की घोषणा की है।
प्रदेश में बचपनशालाओं को तुरंत प्रभाव से बंद करने के लिये परिषद के एसपीडी (स्टेट प्रोजेक्टर डायरेक्टर) की ओर से 14 जनवरी को पत्र जारी किया। जिसकी एक प्रति जिला प्रोजेक्ट को-आर्डिनेटर्स को भेज कर आदेशों की पालना रिपोर्ट 15 जनवरी को ही भिजवाने के लियेे कहा गया। कुछ वर्कर्स व हेल्पर्स को बचपनशाला बंद करने की सूचना 14 जनवरी को शाम को दी गई और कुछ को वीरवार को। अधिकांश वर्कर ने पत्र लेने से इंकार कर दिया। इस निर्णय से वर्कर व हेल्पर में भारी रोष है। कुछ वर्कर्स ने वीरवार को एसकेएस कार्यालय में बैठक भी की। राज्य प्रधान राधा शर्मा ने कहा कि सरकार के निर्णय के खिलाफ 16 जनवरी को एसपीडी कार्यालय पर प्रदर्शन किया जाएगा। न्याय के लिये वर्कर हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने से भी नहीं हटेंगी। उन्होंने बताया कि बचपनशाला बंद करने से पहले उन्हें किसी प्रकार का नोटिस भी नहीं दिया गया। एक साल से वर्कर्स का मानदेय भी बकाया है। उन्होंने उप श्रम आयुक्त के यहां केस भी डाला रखा है।
‘सीएम के दावे तार-तार’
पंचकूला के एसकेएस कार्यालय में विभिन्न जिलों से पहुंचीं सुदेश, सुनीता, ममता, सिम्मी, सरोज, आरती आदि ने कहा कि मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर ने पिछले दिनों कहा था कि प्रदेश में लिंगानुपात ठीक करने के मकसद से सरकार बेटियों को रोजगार उपलब्ध कराने को प्राथमिकता देगी। लेकिन बचपनशाला बंद करने के फैसले से तो मुख्यमंत्री का बयान तार-तार हो रहा है। dt
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