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Sunday, 17 July 2016

रेशनेलाइजेशन से घबरा रहे शिक्षक

** राज्य सरकार ने पहली बार बढ़ाया दायरा, स्कूल प्रवक्ता व जेबीटी भी शामिल
** स्कूलों में शिक्षकों की कमी से जूझ रहे विद्यार्थियों के लिए रामबाण साबित होगा रेशनेलाइजेशन
चंडीगढ़ : राज्य शिक्षा विभाग में हो रहे रेशनेलाइजेशन से न केवल शिक्षकों के रिक्त पदों का पता चलेगा, बल्कि उन स्कूलों को भी शिक्षक मिल सकेंगे, जहां लंबे समय से शिक्षक नहीं हैं। हर बच्चे को शिक्षक उपलब्ध कराने के मकसद से हो रहे रेशनेलाइजेशन का सरकार ने दायरा बढ़ा दिया है। पिछली हुड्डा सरकार ने रेशनेलाइजेशन प्रक्रिया को केवल प्राथमिक शिक्षा तक सीमित रखा था, लेकिन भाजपा सरकार ने स्कूल प्रवक्ताओं से लेकर जेबीटी तक को इसमें शामिल किया है। इस कारण बरसों से एक ही स्थान पर जमे शिक्षक अपनी कुर्सी हिलने की आशंका से भयभीत हैं और सरकार की रेशनेलाइजेशन प्रक्रिया पर अंगुली उठा रहे हैं। 
शिक्षा मंत्री प्रो. रामबिलास शर्मा ने राज्य की नई तबादला नीति भी घोषित कर दी है। शिक्षकों के तबादले करने से पहले सरकार ने पूरे प्रदेश में रेशनेलाइजेशन के जरिए शिक्षा विभाग का एक्सरे करने का निर्णय लिया है। रेशनेलाइजेशन का सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि सरकार के सामने शिक्षकों की वास्तविक जरूरत सामने आ जाएगी। इससे नई भर्तियां करने में भी आसानी होगी। रेशनेलाइजेशन से यह भी पता चल सकेगा कि कौन से शिक्षक दो-दो विषय पढ़ा रहे हैं और कहां शिक्षकों की कमी बनी हुई है, ताकि उन्हें संबंधित स्थानों पर भेजा जा सके। शिक्षा विभाग ने जब से रेशनेलाइजेशन प्रक्रिया को ओपन किया है, तब से शिक्षकों की भौहें चढ़ी हुई हैं। रेशनेलाइजेशन ने शिक्षकों का पूरा गणित बिगाड़कर रख दिया है। इसका विरोध करने वाले शिक्षकों की दिक्कत यह है कि उन्होंने अपने स्टेशनों को पहले से ही चुन लिया था, लेकिन रेशनलाइजेशन होने के उपरांत संबंधित पोस्ट खत्म हो रही हैं, जिस कारण शिक्षकों के लिए अपनी मनपसंद जगह पर टिक पाना मुश्किल हो रहा है। 
इस तरह समङिाए रेशनेलाइजेशन को 
दरअसल विद्यार्थियों के अनुपात में शिक्षकों की नियुक्ति होती है। जेबीटी, मास्टर और प्राध्यापक वर्ग में विद्यार्थियों की अलग संख्या के अनुसार शिक्षकों की स्कूलों में पोस्ट तय की जाती हैं। प्रदेश में ऐसे अनगिनत स्कूल हैं जहां विद्यार्थियों के अनुपात में शिक्षक ज्यादा हैं। इन शिक्षकों को वहां भेजा जाना है जहां विद्यार्थी अधिक हैं और शिक्षक नहीं हैं। सरकार यह कसरत करना चाहती है कि ऐसे स्कूलों में शिक्षक उपलब्ध कराए जाएं, ताकि विद्यार्थी शिक्षक अनुपात सही हो सके।
पद खत्म होने से शिक्षकों में संशय : 
उदाहरण के लिए मिडिल स्कूल में जहां संस्कृत के टीचर को हिंदी पढ़ाने के लिए कहा गया और विज्ञान के अध्यापक को गणित पढ़ाने के लिए कहा गया। वहां अब 5500 के करीब मिडिल स्कूलों में हिंदी और गणित के अध्यापकों के पद समाप्ति की ओर चल पड़े हैं। इससे शिक्षकों में रोष पनपना स्वभाविक है। अगर प्रध्यापक वर्ग की बात करें तो वरिष्ठ माध्यमिक स्कूलों में छात्र संख्या के आधार पर ही पोस्ट का रेशनेलाइजेशन किया गया है। उदाहरण के लिए अगर किसी विद्यालय में राजनीति विज्ञान के 50 छात्र हैं तो वहां एक ही पद स्वीकृत माना जाएगा। ऐसे में प्रध्यापक वर्ग में भी संशय बढ़ रहा है।                                                                              dj

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