बिहार के एक स्कूल में मध्याह्न भोजन योजना के तहत दिए गए भोजन को खाने से हुई 23 बच्चों की मौत के कुछ ही दिनों बाद इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है कि सरकारी स्कूल के शिक्षकों और प्रधानाध्यापकों का काम छात्रों को पढ़ाना है, न कि भोजन बनाने की प्रक्रिया की निगरानी करना। न्यायालय की यह टिप्पणी इसलिए भी अहम है क्योंकि पूरे बिहार में करीब तीन लाख प्राथमिक स्कूल शिक्षकों ने आज मध्याह्न भोजन योजना से जुड़े काम का बहिष्कार किया। इन शिक्षकों का कहना है कि मध्याह्न भोजन योजना के काम में लग जाने से बच्चों को पढ़ाने का उनका काम प्रभावित हो रहा है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति शिवकीर्ति सिंह और न्यायमूर्ति विक्रम नाथ की खंडपीठ ने कल कहा था, ‘स्कूलों के शिक्षकों एवं प्रधानाध्यापकों का काम छात्रों को पढ़ाना है, न कि भोजन बनाने की प्रक्रिया की निगरानी करना।’ खंडपीठ ने इन सवालों के बीच यह टिप्पणी की कि सरकारी स्कूलों में शिक्षणकर्मियों को मध्याह्न भोजन योजना के क्रियान्वयन के काम में शामिल करना चाहिए। उच्च न्यायालय मेरठ स्थित उत्तर प्रदेश प्रधानाचार्य परिषद की ओर से दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी। जनहित याचिका में स्कूलों के जिला निरीक्षक के 19 जून के उस आदेश को चुनौती दी गयी थी जिसमें मध्याह्न भोजन तैयार करने की जिम्मेदारी गैर-सरकारी संगठनों को देने की व्यवस्था खत्म कर दी गयी थी और प्रधानाध्यापकों को निर्देश दिया गया था कि वे अपने-अपने स्कूल में अपनी निगरानी में खाना बनवाएंगे। ..hb
No comments:
Post a Comment
Note: only a member of this blog may post a comment.