हाई कोर्ट ने एक बार फिर सरकार का काम आसान कर दिया। राज्य शिक्षक भर्ती बोर्ड के गठन को चुनौती देने वाली याचिका उच्च न्यायालय ने खारिज कर दी जिससे शिक्षा क्षेत्र को अनिश्चय की स्थिति से उबारा जा सकेगा, साथ ही 20 से 25 हजार शिक्षकों की भर्ती का मार्ग भी सुगम हो जाएगा। इससे पहले भी कई अवसरों पर कोर्ट के निर्णय से ही नीतियों के विरोधाभास से उत्पन्न भंवर से शिक्षा विभाग को छुटकारा मिला था। उलझनें अभी और भी हैं और आशा करनी चाहिए कि सरकार स्वयं समाधान कर लेगी, अदालत में नीति निर्धारण की नौबत नहीं आएगी। अलग राज्य बनने के 47 साल बाद भी प्रदेश में प्रभावशाली शिक्षा तंत्र स्थापित न हो पाना वास्तव में चिंतनीय है। शिक्षकों के हजारों पद रिक्त पड़े हैं और कभी गेस्ट टीचर तो कभी अन्य विकल्पों की बैसाखियों से शिक्षा व साक्षरता के लक्ष्य पूरे करने की कोशिश की जा रही है। शिक्षकों के बीस हजार से अधिक पद रिक्त रहने का कोई तर्कसंगत जवाब सरकार के पास नहीं। सवाल बार-बार पूछा जा रहा है कि वर्षो से पद जानबूझ कर खाली क्यों रखे गए? इस प्रश्न का जवाब दिया जाना चाहिए कि सियासी दखल की वजह से शिक्षा क्षेत्र में उजलापन नहीं आ रहा। अब नई भर्ती में ऐसे आरोप न लगें, यह सुनिश्चित होना चाहिए। नए घटनाक्रम में सरकार का सबसे अहम दायित्व शिक्षा क्षेत्र की अनिश्चितता दूर करने का है।
यह सरकार को भी अहसास है कि वादों और वस्तुस्थिति के बीच संतुलन बनाना इतना आसान नहीं। एक को संतुष्ट करने के लिए दूसरे को असंतुष्ट करने का जोखिम उठाने को कोई तैयार नहीं लेकिन सरकार को इस स्थिति का सामना करने के लिए तैयार तो रहना ही होगा। 15 हजार गेस्ट टीचर के साथ न्याय करने के लिए मैराथन कसरत करनी पड़ेगी। वे आठ साल से काम कर रहे हैं, एक झटके से तो उन्हें रुखसत नहीं किया जा सकता लेकिन यक्ष प्रश्न यह है कि ऐसे में व्यवस्था और प्रक्रिया की निरंतरता बनाए रखने के लिए सरकार के पास कौन सा फामरूला या विकल्प बचा है। शिक्षकों की भर्ती में अधिक विलंब नहीं होना चाहिए। सरकारी स्कूलों का गिरता परीक्षा परिणाम शिक्षा विभाग की छवि लगातार धूमिल कर रहा है। शिक्षा विभाग का आधारभूत ढांचा स्थायी नियुक्तियों से ही मजबूत बनाया जा सकता है। dj
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