पिछले 9 साल में प्रदेश में थोक के हिसाब से खुले इंजीनियरिंग कॉलेज इस बार छात्रों को तरस गए हंै। हालात ये हैं कि कुल 62 हजार सीटों में से सिर्फ 24 हजार ही भर पाई हैं। नतीजा, 160 इंजीनियिरंग कॉलेजों में से 35 ने अपनी सीटें घटा ली। पांच ने अपना बोरिया-बिस्तर समेट लिया।
छात्र मिलने की वजह से घाटे में पहुंचे कई कॉलेज बैंकों से लिया कर्ज नहीं चुका पा रहे। यमुनानगर जिले के एक इंजीनियरिंग कॉलेज को 20 करोड़ का लोन लौटा पाने के कारण बैंक नीलाम करने जा रहा है। कुरुक्षेत्र के एक कॉलेज को भी कुर्की नोटिस हो गया है। सिद्धिविनायक एजुकेशन ट्रस्ट के सीईओ डॉ. एमके सहगल कहते हैं कि इस बार सबसे खराब हालात हैं। स्टेट टेक्निकल सोसायटी ने काउंसलिंग के लिए ठीक से प्रचार नहीं किया। यमुनानगर में स्थित ग्लोबल रिसर्च इंस्टीट्यूट के संचालक मेवाराम कहते हैं कि 2005 से पहले सिर्फ 50 इंजीनियरिंग कॉलेज थे, अब 9 साल में 110 नए खुल गए। प्लेसमेंट घटी तो दाखिले का रूझान घट गया।
अब खत्म हो रहा बीटेक का बूम
शिक्षाविद्प्रो. अश्वनी शर्मा कहते हैं कि 2005 के बाद प्रदेश में इंजीनियरिंग के क्षेत्र में बूम आया। अब लाखों रुपए खर्च कर इंजीनियरिंग की डिग्री पाने वालों को आठ-दस हजार की नौकरी ऑफर हो रही है। हर साल 40 से 50 हजार डिग्री धारक तैयार हो रहे हैं।
चल रहा एजेंट की सेवा का खेल
कुछ इंजीनियरिंग कॉलेज अस्तित्व बचाने के लिए एजेंसियों के मार्फ़त बिहार और जम्मू कश्मीर ही नहीं, बल्कि नेपाल और भूटान तक से छात्रों को लाने की जुगत में हैं। पंचकूला जिले के एक कॉलेज से जुड़े राकेश चौधरी के अनुसार एजेंसियों को कुल फीस का 10 से 20 फीसदी कमीशन मिलता है। छात्रों के लिए डिस्काउंट ऑफर्स भी हैं। इनमें लैपटॉप और किताबें फ्री देना शामिल हैं। यूनिवर्सिटी फीस के अलावा अन्य मदों की फीस में मोल-भाव हो रहा है।
वो सब कुछ जो बदहाली के लिए हैं जिम्मेवार
सरकार की नीतियों में खामी
- प्रदेश में कोई टेक्निकल यूनिवर्सिटी नहीं, जो इंजीनियरिंग कॉलेजों की गुणवत्ता देखे।
- स्टेट टेक्निकल सोसायटी का प्रचार-प्रसार पर और गुणवत्ता विकास पर ध्यान नहीं।
- 10 साल में प्रदेश में 250 से ज्यादा नए इंजीनियरिंग और पॉलीटेक्निक संस्थान खुले।
- इन्फ्रास्ट्रक्चर, फैकल्टी आदि सुधारने के बदले फीस बटोरने पर ध्यान।
ट्रेनिंग के नाम पर रगड़ा
कुरुक्षेत्र के अमित शर्मा ने बीटेक किया। कैंपस प्लेसमेंट में जॉब ऑफर हुई। बेंगलुरू की कंपनी ने चार महीने ट्रेनिंग के नाम पर मुफ्त काम कराया और फिर 10 हजार का वेतन ऑफर किया।'
गुणवत्ता से समझौता
- मुनाफे के चक्कर में सस्ती फैक्लटी, संसाधनों के अभाव
- कॉलेजों को स्टूडेंट चाहिए। कहीं से भी। कैसे भी।
- स्टूडेंट्स को इतनी छूट कि वे चाहें तो सिर्फ परीक्षा देने जाएं।
ये हथकंडे भी
- कॉलेज 100 फीसदी प्लेसमेंट का झांसा देते हैं।
- स्टूडेंट्स को ऑफर लेटर दिखावे का मिलता है, नौकरी नहीं मिलती।
- कई कॉलेजों ने ऐसे कैंप के लिए दिल्ली की एक एजेंसी से अनुबंध कर रखा है। dbpnpt
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