कच्चे कर्मचारियोंको पक्का करने के लिए हुड्डा सरकार द्वारा बनाई सभी रेगुलराइजेशन की पॉलिसी को हाईकोर्ट में चैलेंज किया गया है। याचिका कर्ता ने ग्रुप ए, बी, सी डी सभी कच्चे कर्मचारियों को नियमित करने के फैसले को चुनौती दी है। ऐसे में अब प्रदेश के करीब 20 हजार कच्चे कर्मचारियों की सांसें अटक गई हैं। इससे अम्बाला जिले के करीब 250 कुरुक्षेत्र जिले के करीब 1 हजार कच्चे कर्मचारी प्रभावित होंगे। ध्यान रहे कि सीएम भूपेंद्र सिंह ने 26 फरवरी 2014 को प्रदेशभर में 3 साल से विभिन्न विभागों में नियमानुसार भर्ती कच्चे कर्मचारियों को पक्का करने का फैसला सुनाया था। मामले को लेकर योगेश त्यागी एंड अनदर ने हाईकोर्ट में सुप्रीम कोर्ट के वर्ष 2006 के फैसले की अवमानना को नोटिस दायर किया है। इसकी सुनवाई सोमवार को हाइकोर्ट में 3 नंबर अदालत में चीफ जस्टिस एके मित्तल की अदालत में हुई। जहां से नोटिस फाॅर स्टे के लिए 16 सितंबर की डेट लग गई है।
सुप्रीम कोर्ट का वर्ष 2006 का फैसला :
सुप्रीमकोर्ट ने उमा देवी बर-खिलाफ स्टेट ऑफ कर्नाटक के खिलाफ 2006 में 5 जजों के पैनल ने फैसला सुनाया था कि 10 अप्रैल 2006 तक जिन कच्चे कर्मचारियों को 10 साल काम करते हो गए हैं। उन्हें रेगुलर किया जाएगा। इसके अलावा किसी भी पॉलिसी के तहत कच्चे कर्मचारियों का इसके बाद पक्का नहीं किया जाएगा। इसके बाद एमएल केसरी मामले में भी सुप्रीम कोर्ट ने उमा देवी फैसले में जो 10 साल की सीमा दी गई थी, उसके अनुसार ही भर्ती के आदेश दिए थे। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ हरियाणा सरकार ने वर्ष 2014 में कच्चे कर्मचारियों को पक्का करने का फैसला सुनाकर सुप्रीम कोर्ट के इस फैसला का खंडन किया। इसी मामले को याचिका कर्ता ने केस का आधार बनाया है।
यदि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की अवमानना तय हो गई तो अभी तक जिन कर्मचारियों को सरकार ने रेगुलराइजेशन के तहत नियमित किया है उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा।
कौन है योगेश त्यागी, क्यों लिया कोर्ट में जाने का निर्णय
योगेश त्यागी सोनीपत का रहने वाला एक नौजवान है। योगेश 4 बार नेट का एग्जाम क्लीयर कर चुका है। इसके साथ ही याची अतुल ने फिजिक्स में नेट क्लीयर कर लेक्चरर के लिए एप्लाई किया है। योगेश ने कॉलेज कार्डर की पोस्ट के लिए एप्लाई किया है। ध्यान रहे कि यह 1396 पोस्ट हैं। इसी मामले के साथ यदि कच्चे कर्मचारियों को नियमित कर दिया जाता है तो इन 1396 युवाओं का भविष्य अंधकारमय हो जाएगा। इसी तरह पीएचडी अन्य योग्यता प्राप्त युवा जो लंबे समय से रोजगार की तलाश में है, उन्हें भी सरकार की इस पॉलिसी से रोजगार से वंचित रहना पड़ेगा।
"हाईकोर्ट में अगली सुनवाई 16 सितंबर तय हुई है। इसमें हमें स्टे मिलने की उम्मीद है। हो सकता है कि सरकार को सुप्रीम कोर्ट की अवमानना का दोषी भी करार दे दिया जाए। वर्ष 2006 के बाद किसी भी कच्चे कर्मचारी को पक्का नहीं किया जा सकता। सरकार वन टाइम पॉलिसी के तहत भी कर्मचारियों को केवल वर्ष 2011 तक ही नियमित कर सकती थी।"--अनुपमगुप्ता एंड अनुराग गोयल, याचिकाकर्ताके एडवोकेट dbamb
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