गिरिराज अग्रवाल : विधानसभा चुनाव को देखते हुए तीसरी बार सरकार बनाने के प्रयास में मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा एक के बाद एक लोकलुभावन घोषणाएं तो कर रहे हैं, लेकिन प्रदेश पर कर्ज भी बढ़ाते जा रहे हैं। पिछले 9 साल में प्रदेश पर कुल कर्जा 2004-05 के 23,319 करोड़ रुपए से बढ़कर 80 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा हो गया है। अगले साल तक मार्च तक यह आंकड़ा 94 हजार करोड़ रुपए तक पहुंचने का अनुमान है। यानी दो महीने बाद जो नई सरकार आएगी, उसके पास टैक्स लगाने के अलावा कोई चारा नहीं होगा। हो सकता है नई सरकार को कर्मचारियों को पंजाब के समान वेतनमान देने, सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में पेंशन बढ़ाने जैसे फैसलों पर पुनर्विचार करना पड़े।
दरअसल सीएम राज्य की आर्थिक हालात इसलिए भी खस्ता बनाना चाहते हैं ताकि किन्हीं कारणों से अगर कांग्रेस की सरकार नहीं बनी तो लोग यही मानें कि हुड्डा अच्छे थे और नई सरकार की छवि खराब हो।
पंजाब के बराबर वेतनमान देने के मुद्दे को अब तक सीएम वहां की खराब वित्तीय स्थिति का हवाला देकर टालते रहे हैं। हर बार उनका तर्क होता था कि पंजाब में तो 6-6 महीने से वेतन पेंशन नहीं मिल रही। वहां की सरकार को अपनी संपत्ति बेचनी या गिरवी रखनी पड़ रही हैं। हम हरियाणा में ऐसी स्थिति नहीं लाना चाहते। ऐसे में चुनाव के वक्त पर सरकार के पास इसके लिए पैसा कहां से गया, इसे लेकर कर्मचारियों के मन में सवाल उठ रहे हैं। अगर राज्य के खजाने की वित्तीय स्थिति इतनी सुदृढ़ थी तो पंजाब के बराबर वेतनमान और पेंशन बढ़ाने के फैसले तुरंत लागू क्यों नहीं हो सकते?
राज्य के वित्त विभाग के आंकड़ों को मानें तो सरकार जुलाई और अगस्त में ही 1900 करोड़ रुपए का कर्ज ले चुकी है, जबकि 700 करोड़ रुपए का कर्ज लेना प्रक्रिया में है। चालू वित्त वर्ष के 7 महीने अभी बाकी हैं। वर्ष 2014-15 के बजट में सरकार ने 13951.17 करोड़ रुपए का कर्ज लेने का अनुमान बताया था।
पिछले दो-तीन साल से सरकार के कर्ज लेने की गति इतनी बढ़ गई है कि कर्ज राशि बजट अनुमान से ज्यादा हो रही है। वर्ष 2012-13 के बजट अनुमानों में 8130.33 करोड़ रुपए कर्ज लेना था जबकि लिया गया 9330.33 करोड़ रुपए। इसी तरह वर्ष 2013-14 के बजट अनुमानों में 10591.50 करोड़ रुपए कर्ज लेना था जो बढ़कर 11448.48 करोड़ रुपए हो गया। इस संबंध में कैग द्वारा 4 मार्च, 2014 को अपनी रिपोर्ट में की गई टिप्पणी भी काबिले गौर है कि वर्ष 2012-13 तक जिस उद्देश्य (विकास) के लिए कर्जा लिया गया था, वह उस उद्देश्य (विकास कार्यों) पर खर्च नहीं हो रहा था। यानी विकास का पैसा वेतन-भत्ते, पेंशन और अन्य लोकलुभावन घोषणाओं पर खर्च हो रहा है। db
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