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Sunday, 24 August 2014

सीटें भरने की होड़ और सरकार से प्रोत्साहन मिलने से बिगड़े हालात

** इंजीनियरिंग कॉलेजों में सीटें खाली रहने का संकट 
प्रदेश में इंजीनियरिंग कॉलेजों के सामने सीटें भरने का संकट भले अब गंभीर हुआ हो, मगर इसके संकेत चार साल पहले से मिलने लगे थे। पिछले चार सालों में 90 प्रतिशत इंजीनियरिंग कॉलेजों में 20 से 30 फीसदी सीटें खाली रहीं। इसी वजह से 40 कॉलेजों ने 4,605 सीटें सरेंडर कर दी। इतनी सीटें सरेंडर होने के कारण हरकत में आई स्टेट टेक्नीकल सोसायटी ने सभी कॉलेजों से खाली सीटों का डाटा भी जुटाया लेकिन इस डाउन-फॉल के रोकने के कोई इंतजाम नहीं किए, इसी वजह से इस बार हालात इतने खराब हो गए। 
पांच साल में खुले 250 कॉलेज : 
2005 में प्रदेश सरकार ने डीम्ड यूनिवर्सिटी, इंजीनियरिंग कॉलेज और पॉलीटेक्नीक खोलने के नियमों का सरलीकरण हुआ। नतीजा प्रदेश में अगले पांच साल में ही 110 (कुल 160) नए इंजीनियरिंग कॉलेज और 125 (कुल 192) से ज्यादा पॉलीटेक्नीक खुल गए। शुरू के दो-तीन साल तो एडमिशन भी मिले और प्लेसमेंट भी। लेकिन सीटें भरने की होड़ में गुणवत्ता पीछे छूट गई। नतीजा प्लेसमेंट घटती गई लेकिन डिग्रीधारी बढ़ते गए। अम्बाला के दिनेश कुमार बताते हैं कि उन्होंने मैकेनिकल इंजीनियरिंग की डिग्री ली। प्लेसमेंट के लिए भटकता रहा, अब प्राइवेट फर्म में आठ हजार की पगार पर कंप्यूटर ऑपरेटर का काम कर रहा है। 
आधे भावी इंजीनियर हो रहे फेल : 
केयू में बीटेक के छठे सेमेस्टर में करीब 14 हजार छात्रों ने परीक्षा दी लेकिन आधे फेल हो गए। पिछले तीन सालों से इंजीनियरिंग का रिजल्ट 30 से 40 प्रतिशत ही रहा है। पॉलीटेक्नीक के नतीजे तो और भी बुरे रहे। जून में घोषित सेमेस्टर के नतीजों के मुताबिक 192 पॉलीटेक्नीक में से 100 में तो 80 फीसदी छात्र फेल हुए। 42 में पास प्रतिशत 10 प्रतिशत से भी कम रहा। 
इधर, बीकॉम में 100 फीसदी से ऊपर गई मेरिट 
अम्बाला,करनाल, पानीपत, पंचकूला समेत कई जिलों के कुछ कॉलेजों में बीकॉम में दाखिले के लिए मेरिट 100 फीसदी से ऊपर पहुंची और कट ऑफ भी 85 फीसदी से नीचे नहीं आई। बीएससी में भी यह 80 प्रतिशत के आसपास ही अटकी। संकेत साफ हैं कि इंजीनियरिंग से मोहभंग हो रहा है तो बैचलर ऑफ साइंस (बीएससी) और बैचलर ऑफ कॉमर्स (बीकॉम) में रुझान बढ़ गया। इसी वजह से सरकार को सभी सरकारी प्राइवेट कॉलेजों में 10 प्रतिशत सीटें बढ़ानी पड़ी। 
शिक्षाविदों की नजर में ये कारण 
प्लेसमेंट में कमी बड़ी वजह 
"इंडस्ट्री में प्लेसमेंट घटने से इंजीनियरिंग का रुझान घटा है। नई सरकार से उम्मीद है कि इंडस्ट्रीज में रास्ते खुलेंगे।"--डॉ.सचिन वधवा,डायरेक्टर केआईटीएम,कुंजपुरा, करनाल। 
कॉलेज की संख्या ज्यादा 
"इंजीनियरिंगकॉलेजों की संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि से गुणवत्ता घटना ही इन हालात के लिए जिम्मेदार है"--आरकेचौधरी, डायरेक्टर,एपिट 
निजी क्षेत्र में नौकरियां घटी 
"एकतो निजी क्षेत्र में नौकरियां घटी हैं, दूसरा फिर परंपरागत कोर्सेस की तरफ रुझान बढ़ा है।"--डॉ.सुखबीर सिंह, एनसीकॉलेज ऑफ इसराना
यूपी-पंजाब हमारे से बेहतर 
सिद्धिविनायक एजुकेशन ट्रस्ट के सीईओ डॉ. एमके सहगल कहते हैं कि पड़ोसी राज्य में पंजाब टेक्नीकल यूनिवर्सिटी इंजीनियरिंग में दाखिले के लिए काउंसलिंग करती है। पूरा प्रचार किया जाता है, स्कूलों में जाकर टेक्नीकल शिक्षा के लिए मोटिवेट करती है। जबकि हरियाणा में स्टेट टेक्नीकल सोसायटी का रवैया ढीला है। कॉलेजों की समस्या जानने के लिए सोसायटी ने लंबे समय से कोई मीटिंग तक नहीं बुलाई है। दूसरी तरफ, उत्तर प्रदेश में इंजीनियरिंग में दाखिला लेने वाले को सरकार 25 हजार रुपए देती है।                                          db



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