जेबीटी अध्यापकों की भर्ती में अनियमितताएं सामने के बाद लग रहा था नियुक्ति के लिए लंबा इंतजार करना पड़ सकता है पर अदालत में मजबूत पैरवी के बाद मुश्किल से संकट के बादल छंट पाए। सरकार व शिक्षा विभाग अब फिर आफत को बुलावा देते दिखाई दे रहे हैं। बड़ी संख्या में जेबीटी अध्यापकों को रातों-रात नियुक्ति पद थमा कर आनन-फानन में स्कूल आवंटित किए जा रहे हैं। इस कार्य में भी व्यावहारिक आकलन नहीं किया जा रहा और जेबीटी शिक्षकों को उन स्कूलों में भेजा जा रहा है जिनमें पद ही खाली नहीं। यदि जेबीटी को समायोजित किया गया तो वहां पहले से कार्यरत गेस्ट टीचर सरप्लस हो जाएंगे। सरकार व शिक्षा विभाग अपनी जवाबदेही साबित करने के लिए जानबूझ कर दोनों के बीच टकराव की स्थिति पैदा कर रहे हैं। प्रदेश में शिक्षा क्षेत्र में आरंभ से ही अनियोजित या किसी सीमा तक अराजक स्थिति रही है। समस्या समाधान के नाम पर हर बार तात्कालिक उपाय करके जिम्मेदारी का निर्वाह करने की कोशिश की गई। शिक्षकों के हजारों पद खाली थे लेकिन स्थायी नियुक्ति पर कभी गंभीरता नहीं दिखाई गई। 15 हजार से अधिक अतिथि अध्यापक चरणबद्ध तरीके से भर्ती कर दिए गए। साबित हो चुका है कि उस प्रक्रिया में नियमों का घोर उल्लंघन किया गया। अदालती फैसले से उनका वर्तमान और भविष्य अधर में लटक गया पर सरकार ठोस विकल्प ढूंढ़ने के बजाय उन्हें नियमित करने का दिलासा देती रही। फिर एक ही झटके में साफ इनकार भी कर दिया। अब बात जेबीटी की आई तो उन्हें नियुक्ति पत्र व स्कूल आवंटित करने में दिखाई जा रही अति तत्परता से आभास हो रहा है मानो सरकार सभी गेस्ट टीचरों को सरप्लस दिखाना चाहती है। इससे टकराव की स्थिति पैदा हो सकती है जो सरकार की साख और विश्वसनीयता पर बड़ा सवाल चस्पां कर सकती है। सरकार को सुनिश्चित करना होगा कि जैसे छेद जेबीटी भर्ती प्रक्रिया में दिखाई दिए थे वैसे उनकी ज्वाइनिंग के दौरान सामने न आएं। शिक्षा निदेशालय को आधारभूत स्तर पर गहन मंथन करके तमाम व्यावहारिक और तार्किक पहलुओं को सामने रखते हुए अगला कदम उठाना चाहिए। शिक्षा के लिए समान और तर्कसंगत नीति बनाए जाने की आवश्यकता है। भर्ती प्रक्रिया को भी दुरुस्त करते हुए तदर्थवाद की प्रवृत्ति से छुटकारा पाया जाए। djedtrl
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