** वर्दी-किताबें देने से मना करने पर जताई नाराजगी
** कहा, संसद द्वारा बनाए कानून का पालन जरूरी
नई दिल्ली : निजी स्कूलों ने एक बार फिर आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के बच्चों को कॉपी, किताबें व वर्दी देने में असमर्थता जताई है। हाईकोर्ट ने बृहस्पतिवार को इस पर नाराजगी जताते हुए कहा कि निजी स्कूल वर्तमान में कमाई का अड्डा बन गए हैं। उन्हें बच्चों को शिक्षा का पूरा सामान उपलब्ध करवाने की जिम्मेदारी है जिससे वे बच नहीं सकते। खंडपीठ ने मामले की सुनवाई अब 13 अक्तूबर को तय की है।
न्यायमूर्ति बीडी अहमद व न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल की खंडपीठ ने निजी स्कूलों की एसोसिएशन के तर्क पर आपत्ति जताई कि कई स्कूलों में प्रति बच्चा वार्षिक छह हजार रुपये से भी ज्यादा की वर्दी पड़ती है। ऐसे में वे वर्दी उपलब्ध नहीं करवा सकते। इस पर अदालत ने कहा कि छह हजार रुपये की वर्दी किस हिसाब से पड़ती है, ये बताएं। शिक्षा के अधिकार कानून (आरटीई) के तहत 8 से 14 वर्ष के बच्चों को निशुल्क व आवश्यक शिक्षा जरूरी है। इसके तहत ईडब्ल्यूएस श्रेणी के बच्चों को निशुल्क वर्दी व किताबें देना जरूरी है। आप बच्चों को उक्त शिक्षा सामग्री उपलब्ध करवाएं जिसकी एवज में सरकार आपको पैसे देगी। सरकार प्रति बच्चा हर माह 1,290 रुपये यानी 15,480 रुपये वार्षिक प्रदान कर रही है जो पर्याप्त है। आरटीई कानून संसद ने पास किया है और उसका पालन जरूरी है। शिक्षा देना सरकार की प्राथमिक जिम्मेदारी है और आप इसका हिस्सा हैं।
वहीं, अदालत के समक्ष स्कूलों के अधिवक्ता ने कहा कि हम बच्चों को निशुल्क शिक्षा प्रदान कर रहे हैं और ट्यूशन फीस व अन्य मदों में कोई राशि नहीं लेते, लेकिन किताबें, वर्दी व लेखन सामग्री प्रदान करवाना सरकार की जिम्मेदारी है। इस पर खंडपीठ ने कहा कि आरटीई कानून के तहत सभी सामान आपको देने हाेंगे। इसके लिए आप जिम्मेदारी से पीछे नहीं हट सकते। यदि ऐसा है तो आप इस कानून को चुनौती दो।
वर्दी नहीं दे सकते तो यह सिस्टम खत्म करो
खंडपीठ के कड़े रवैये को देखकर स्कूलों ने माना कि वे किताबें दे सकते हैं जिसकी राशि का भुगतान सरकार करे। वर्दी नहीं दे सकते, क्योंकि सरकार कम राशि देती है जबकि हमारे स्कूलों में वर्दी के दाम छह हजार रुपये से भी ज्यादा हैं। इस पर खंडपीठ ने कहा कि आप स्कूलों में वर्दी सिस्टम खत्म कर दो यदि ऐसा नहीं हुआ तो गरीब बच्चों से भेदभाव होगा। हमारा उद्देश्य साफ है कि कानून के तहत ईडब्ल्यूएस व अशक्त बच्चों को शिक्षा मिले व उनसे कोई भेदभाव न हो। बच्चे किसी भी हालत में परेशान नहीं होने चाहिए। au
No comments:
Post a Comment
Note: only a member of this blog may post a comment.