** 8,000 करोड़ रुपए है शिक्षा का सालाना बजट
** 33,000 रुपए सालाना खर्च होते हैं एक बच्चे पर
चंडीगढ़ : खुद को योग्य दिखाने के लिए शिक्षक 9वीं में तो 90 फीसदी से ज्यादा विद्यार्थियों को पास कर देते हैं लेकिन दसवीं की बोर्ड की परीक्षा में इनमें से आधे से ज्यादा फेल हो रहे हैं। इस गड़बड़ी पर सख्त एक्शन लेते हुए शिक्षा विभाग ने अब उन सभी स्कूलों के प्रिंसिपलों से स्पष्टीकरण मांगा है, जिनके यहां स्कूली और बोर्ड परीक्षाओं के रिजल्ट में 25 प्रतिशत से ज्यादा का अंतर है।
शिक्षा विभाग के प्रवक्ता ने बताया कि स्कूली शिक्षा की इस हालत की एक वजह यह भी है कि काफी टीचर तो स्कूलों में पढ़ा ही नहीं रहे हैं। राजनीतिक प्रभाव का इस्तेमाल करके अपनी-अपनी सुविधानुसार डेपुटेशन पर लगे हुए हैं। पिछले एक सप्ताह में ही पंचकूला स्थित डायरेक्टरेट से 18-19 लेक्चररों का डेपुटेशन खत्म करके स्कूलों में भेजा गया है। अब प्रदेशभर में डेपुटेशन खत्म करके टीचरों को स्कूलों में भेजने की व्यवस्था की जा रही है।
प्रदेश सरकार हर साल शिक्षा पर 8000 करोड़ रुपए खर्च करती है। इसके बावजूद अपेक्षित परिणाम नहीं मिल रहे हैं। अगर पूरे प्रदेश की बात करें तो 9वीं कक्षा का रिजल्ट जहां 94.31 प्रतिशत रहा है, वहीं 10वीं कक्षा में यह घटकर 56.84 प्रतिशत रह गया। 11वीं कक्षा में आर्ट्स का 93.97, कॉमर्स का 90.40 और साइंस का 90.13 प्रतिशत रिजल्ट रहा। अगले साल जब 12वीं कक्षा में बोर्ड हुआ तो यही रिजल्ट गिरकर क्रमशः 75.08, कॉमर्स का 72.84 और साइंस का 74.20 प्रतिशत ही रह गया। पिछली सरकार में 52 स्कूलों का तो रिजल्ट शून्य रहा था।
"प्रदेश में स्कूली शिक्षा की हालत चिंताजनक है। सरकार का ध्यान गुणवत्ता सुधारने और सरकारी स्कूलों के बच्चों को प्राइवेट स्कूलों के समकक्ष लाकर खड़ा करने पर है। फिलहाल जिन स्कूलों के 9वीं और 10वीं, 11वीं और 12वीं के रिजल्ट में 25 प्रतिशत से ज्यादा का अंतर है, उन प्रिंसिपल से स्पष्टीकरण मांगा गया है। बाद इस अंतर को घटाकर 15, फिर 10 प्रतिशत तक लाया जाएगा।"---टी.सी. गुप्ता, प्रिंसिपल सेक्रेटरी, शिक्षा विभाग db
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