हरियाणा के सरकारी स्कूलों में द्वि-स्तरीय शिक्षा प्रणाली कागजों में ही लागू करने पर स्कूल शिक्षा विभाग घिर गया है। धरातल पर योजना के लागू न होने से अब भी राज्य में प्राथमिक, मौलिक व सेकेंडरी तीन तरह के स्कूल चल रहे हैं। शिक्षा को तर्कसंगत बनाने और शिक्षा का अधिकार कानून प्रभावी तरीके से अमल में लाने के लिए सरकार ने पांच साल पहले द्वि-स्तरीय प्रणाली की घोषणा तो कर दी पर व्यावहारिक रूप से अभी तक लागू नहीं किया। इसके तहत सिर्फ पहली से आठवीं और नौवीं से बारहवीं तक ही स्कूल होने थे।
हरियाणा स्कूल लेक्चरर्स एसोसिएशन (हसला) ने माध्यमिक शिक्षा विभाग के निदेशक के साथ निदेशालय में हुई बैठक में इस मसले को प्रमुखता से उठाया। हसला के राज्य प्रधान दयानंद दलाल ने साफ किया की यदि विभाग में द्विस्तरीय प्रणाली लागू की जा चुकी है तो उच्च विद्यालयों एवं मुख्याध्यापकों का कोई औचित्य नहीं है। शिक्षकों और लेक्चरर को विभाग अंधेरे में रख रहा है। इसे लेकर स्थिति स्पष्ट की जाए। संगठन ने नेशनल काउसिल ऑफ टीचर एजुकेशन की राष्ट्रीय नीति का हवाला देते हुए नौवीं-दसवीं के विद्यार्थियों को पढ़ाने वाले शिक्षकों के लिए बीएड की शर्त पर भी स्थिति स्पष्ट करने की मांग की। दलाल ने कहा कि वर्ष 2012 से पूर्व नियुक्त स्कूल प्राध्यापक इस शर्त को पूरा नहीं करते। दूसरी ओर स्कूल अध्यापक इन कक्षाओं को पढ़ाते आ रहे है। इसलिए शिक्षा में गुणात्मक सुधार को ध्यान में रखकर व्यावहारिक निर्णय लिया जाए।
बैठक में शिक्षा विभाग में व्याप्त विसंगतियों को लेकर भी विचार विमर्श किया गया। निदेशक एमएल कौशिक ने हसला की मांगों को प्राथमिकता के आधार पर पूरा करने का आश्वासन दिया है। उन्होंने कहा कि सरकार ने अगर जल्द मांगों पर गौर नहीं किया तो लेक्चरर को अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करना पड़ेगा।
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