** हरियाणा के प्रमुख सचिव शिक्षा और एचएसएससी सचिव से जवाब तलब
हरियाणा में असिस्टेंट लेक्चरर भर्ती करने के आदेश के बावजूद हरियाणा स्टाफ सलेक्शन कमीशन (एचएसएससी) की ओर से आदेश न मानने और उच्चतर शिक्षा के प्रमुख सचिव द्वारा एचएसएससी को भर्ती से रोकने पर पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने उनसे जवाब तलब किया है।
जस्टिस महेश ग्रोवर की एकल बेंच ने प्रमुख सचिव समेत कमीशन के सचिव से पूछा है कि उन्हें कोर्ट के आदेश की अवमानना का दोषी क्यों न माना जाए। दोनों से इस पर शपथपत्र मांगा गया है और सुनवाई 30 मार्च तक स्थगित कर दी गई है।
जनवरी 2014 में एक याचिका दायर कर हाईकोर्ट को बताया गया था कि राज्य में पिछले कुछ वर्षों से गेस्ट लेक्चररों से काम चलाया जा रहा है, लेकिन नियमित भर्ती नहीं की जा रही। हाईकोर्ट की ओर से जवाब मांगने पर प्रमुख शिक्षा सचिव ने कहा था कि अस्थायी आधार पर 1396 पदों पर नियुक्ति की जा रही है।
भर्ती प्रक्रिया में सात से आठ महीने लगेंगे। दिसंबर में विभाग ने भर्ती मुकम्मल करने के लिए समय मांग लिया था। 15 फरवरी 2015 तक भर्ती का समय प्रदान किया गया था। तय समय में भर्ती न होने पर याची सुनील कुमार ने एडवोकेट जगबीर मलिक के माध्यम से अवमानना याचिका दायर कर दी थी।
याचिका पर कमीशन को नोटिस जारी हुआ तो सचिव ने बताया कि राज्य सरकार ने कमीशन को आदेश जारी करके सभी भर्ती प्रक्रियाएं रोकने को कहा था। अगले दिन 28 जनवरी को सभी भर्तियां रद्द कर दी थीं। लिहाजा भर्ती प्रक्रिया मुकम्मल नहीं हो सकी।
हाईकोर्ट ने कहा था कि बेंच के आदेश पर सरकार का यह आदेश लागू नहीं होगा, इसलिए भर्ती प्रक्रिया मुकम्मल की जाए।
इस पर कमीशन ने कहा कि सरकार को हाईकोर्ट के आदेश की जानकारी दी थी, लेकिन भर्ती की मंजूरी सरकार ने नहीं दी। यह भी बताया कि नई भर्ती के लिए 1932 पदों की मंजूरी मांगी गई थी, लेकिन यह भी मंजूर नहीं हुई। अब तीन फरवरी को 1647 पदों की मंजूरी मिली है। इस संबंध में विज्ञापन मंगलवार को ही प्रकाशित किया गया है।
जस्टिस महेश ग्रोवर ने अंतरिम आदेश में कहा है कि कमीशन ने थोड़ी कोशिश की, लेकिन हाईकोर्ट का आदेश होने के बावजूद भर्ती न करना गलत है। सरकार ने हाईकोर्ट के फैसले को नजरअंदाज किया है। यह सीधे तौर पर कोर्ट के आदेश की अवमानना का मामला बनता है।
कमीशन के सचिव और विभाग के प्रमुख सचिव के को कोर्ट आदेश की अवमानना एक्ट में सजा देने से पहले अधिकारियों को शपथ पत्र के माध्यम से यह बताना जरूरी है कि उन्हें अवमानना का दोषी क्यों न ठहराया जाए।।
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