रोहतक : शिक्षा विभाग की नीतियों का खामियाजा एक बार फिर बच्चों को भुगतना
पड़ सकता है। प्रथम सेमेस्टर में आए खराब परिणाम के बाद शिक्षा निदेशालय
द्वारा उठाया गया कदम बच्चों व शिक्षकों के लिए परेशानी का कारण बन गया है।
जिन स्कूलों का प्रथम सेमेस्टर में परिणाम अस्सी फीसद से अधिक था, उनके
शिक्षकों को खराब परिणाम वाले स्कूलों में दो माह के लिए भेजने के निर्देश
जारी कर दिए है।
शिक्षा विभाग की ओर से भी दो माह के लिए शिक्षकों को
सीनियर सेकेंडरी स्कूलों से रिलीव कर दूसरे स्कूलों में भेजने की तैयारी
कर ली गई है।
विभाग के फरमान के बाद खराब परिणाम वाले स्कूलों में भेजने
से प्राध्यापक काफी परेशान है। शिक्षकों को जिला शिक्षा अधिकारी व खंड
शिक्षा अधिकारी कार्यालय के धक्के खाते हुए आसानी से देखा जा सकता
है
"जिन स्कूलों का परिणाम शिक्षकों की मेहनत
के कारण अच्छा आया था, उन्हें अचानक दो माह के लिए ऐसे स्कूलों में भेजा
जा रहा है जहां पाठ्यक्रम आधा भी नहीं हुआ। अगर ऐसा ही चला तो प्रथम
सेमेस्टर में जहां परिणाम 30-40 फीसद रहा था, वह घटकर बीस फीसद पर आ जाएगा।
अगर शिक्षा निदेशालय अच्छा परिणाम चाहता है तो अपनी नीतियों को बदले और
रेशनेलाइजेशन के नाम पर शिक्षकों का उत्पीड़न
बंद करे।"-- बलजीत सहारण, जिला प्रधान, हसला।
रिजल्ट में न हो जाए बंटाधार
परीक्षाएं सिर
पर है और ऐसे में उन स्कूलों का क्या होगा, जिनका परिणाम अस्सी फीसद या
उससे अधिक रहा है। जिन स्कूलों में शिक्षक रिजल्ट सुधार के लिए जुटे हुए
थे, वहां पर भी बंटाधार होने की नौबत आकर खड़ी हो गई है। दूसरे स्कूलों में
कुछ समय के लिए भेजे जाने के कारण शिक्षकों को खासी परेशानी हो रही है।
बारहवीं तक के बच्चों का पाठ्यक्रम समय पर पूरा करवाने की जिम्मेदारी
शिक्षकों पर है। dj
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