चंडीगढ़ : प्रदेश के राजकीय विद्यालयों में शैक्षणिक माहौल को गुणवत्तापरक बनाने के लिए स्कूल शिक्षा विभाग ने अब स्कूल परिवर्तन नीति तैयार की है। विभाग के सूत्रों का दावा है कि नई नीति के लागू होने से विद्यालयों में पठन-पाठन का माहौल अगले पांच-सात साल में पूरी तरह बदल जाएगा। बॉस्टन कंसलटिंग ग्रुप के सहयोग से स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा यह नीति तीन माह में तैयार की गई है। एक अध्ययन के मुताबिक अब तक राज्य के स्कूलों में पढ़ाई का सारा फोकस हिदायत देने और सिलेबस पूरा कराने पर रहता है। इस प्रक्रिया में छात्रों की सहभागिता बहुत कम है। प्रोत्साहन न मिलने के कारण शिक्षक अपनी योग्यता सिद्ध नहीं कर पाते। स्कूलों में पर्याप्त शिक्षण सामग्री के कमी के कारण मल्टी ग्रेड मल्टी लेवल शिक्षण का माहौल नहीं बन पा रहा।
इसे ध्यान में रखते हुए नई नीति ‘सीखने की प्रक्रिया के स्तर के परिणामों की ट्रैकिंग’ (लर्निग लेवल आउटकम ट्रैकिंग) काफी कारगर होगी। इस नीति के तहत राज्य के सभी स्कूलों की गुणवत्ता परखी जा सकेगी। शिक्षकों की वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट में अब वर्ष भर की अलग-अलग उपलब्धियां रिकार्ड की जाएंगी।
मुख्य अध्यापकों को मुख्य कार्यकारी अधिकारियों की तरह अकादमिक, प्रशासनिक और प्रबंधन प्रशिक्षण दिया जाएगा। आंकड़ों के संग्रहण, विश्लेषण के लिए मैनेजमेंट इंफॉर्मेशन सिस्टम विकसित करने का निर्णय किया है। सांस्कृतिक परिवर्तन के लिए जिला स्तर पर वर्कशाप का आयोजन होगा जिनमें शिक्षक, मुख्याध्यापक और जिला अधिकारी भाग लेंगे।
बुनियादी सुविधाओं के मामले में काफी आगे होते हुए भी हरियाणा में स्कूली शिक्षा की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। वैसे ढांचागत सुविधाओं के मामले में हरियाणा के स्कूल राष्ट्रीय औसत के मुकाबले काफी बेहतर हैं।
माध्यमिक स्कूलों की राष्ट्रीय औसत 10 किलोमीटर प्रति वर्ग पर 0.61 के मुकाबले हरियाणा में 1.50 है। 20 प्रतिशत राष्ट्रीय औसत के मुकाबले हरियाणा में 33 प्रतिशत स्कूलों में कंप्यूटर हैं। इतना सब होने के बावजूद राज्य में 2012 में बारहवीं कक्षा में 66.23 प्रतिशत छात्र ही उत्तीर्ण हो पाए।राष्ट्रीय शैक्षिक एवं अनुसंधान परिषद के 2011 में हुए सर्वेक्षण के मुताबिक राज्य में पांचवीं कक्षा के छात्रों का शैक्षिक स्तर राष्ट्रीय औसत के मुकाबले 4.7 प्रतिशत कम है। dj
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