कुरुक्षेत्र : कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटीमें प्रशासन खुद नियमों को ताक पर रखकर पद बांटे जा रहे हैं। जिसके चलते एक कर्मचारी का पद तो उपअधीक्षक का है लेकिन उसे शक्तियां प्रशासनिक अधिकारी की दी हुई हैं। इतना ही नहीं इससे भी दिलचस्प बात तो यह है कि उक्त अधिकारी को एक साल के लिए ही प्रशासनिक अधिकारी का पद दिया गया था। इसके बाद तो पद पर कार्यकाल बढ़ाने के लिए दोबारा आवेदन हुआ और ही प्रशासन ने कार्यकाल बढ़ाया। इसके बावजूद उक्त अधिकारी की प्रशासनिक अधिकारी की शक्तियां कायम हैं। केयू के कर्मचारी भी इस मामले में केयू प्रशासन की लापरवाही को देखकर हैरान हैं। इतना ही नहीं एक कर्मचारी ने इस पूरे मामले की शिकायत भी एक साल पहले दी थी, इसके बावजूद प्रशासन सबकुछ जानकर भी अनजान बनने की कोशिश कर रहा है।
सीनियर को मिले बड़ा पद :
कई अधीक्षकों ने कहा कि केयू प्रशासन की इस लापरवाही को लेकर उनमें रोष है। उन्होंने कहा कि जब अधीक्षक मौजूद हैं तो उप अधीक्षक को अधीक्षक से ज्यादा ऊंचा पद देना पूरी तरह से गलत है। केयू प्रशासन को इस मामले में जल्द से जल्द उचित कार्रवाई करनी चाहिए। ताकि इस तरह की गड़बड़ हो। अधीक्षक देवेंद्र सचदेवा ने कहा कि जब उक्त अधिकारी से सीनियर अधिकारी मौजूद हैं तो उन्हें यह पद देना चाहिए। सचदेवा ने कहा कि आरटीआई से मिली जानकारी के अनुसार उक्त पद पर अधिकारी की नियुक्ति एक साल के लिए थी, ऐसे में दोबारा टर्म लेने के लिए प्रशासनिक अनुमति जरूरी है। बिना अनुमति के पद पर बने रहना भी नियमानुसार गलत है। उन्होंने कहा कि ऐसे में उन कर्मचारियों में भी निराशा पैदा होती है जोकि उनसे उच्च पद पर हैं लेकिन उन्हें छोटा पद दिया हुआ है।
डिमोशन का भी नहीं पद पर असर
मजे की बात तो यह है कि उक्त अधिकारी पर डिमोशन का भी कोई असर नहीं हुआ। गौरतलब है कि केयू प्रशासन ने पंजाब और हरियाणा हाइकोर्ट की डबल बैंच के आदेशानुसार एससी वर्ग के 26 अधीक्षकों की डिमोशन की थी। इसमें उक्त अधिकारी का भी नंबर आया था। ऐसे में भले ही कागजों में अधिकारी का पद उप अधीक्षक का रह गया लेकिन उन्हें शक्तियां अभी भी प्रशासनिक अधिकारी की मिली हुई हैं। केयू वीसी को लिखे पत्र में कर्मचारी देवेंद्र सचदेवा ने आरोप लगाया कि 12 अगस्त 2009 को एसएफएस के तहत उक्त अधिकारी को प्रशासनिक अधिकारी का पद सौंपा गया था। उस समय वे अधीक्षक के पद पर कार्यरत थे। ऐसे में जब डिमोशन हुई तो उनका पद घटकर उपअधीक्षक का ही रह गया। ऐसे में अधीक्षकों के रहते निचले पद वाले को ऊंचा पद देना पूरी तरह से गलत है। इतना ही नहीं पत्र में यह भी बताया गया है कि एक साल के लिए हुई इस पद पर नियुक्ति के बाद जब समय सीमा पूरी हुई तो उसके बाद समय सीमा को बढ़ाने और स्वीकृति देने के लिए कोई फाइल नहीं भेजी गई। कर्मचारी ने इस मामले में केयू वीसी डॉ. डीडीएस संधू से उचित कार्रवाई की मांग की है। शिकायत को पूरा एक साल बीत चुका है। इसके बावजूद केयू प्रशासन की ढीली चाल के कारण कोई कार्रवाई नहीं हो पाई है।
मामले का संज्ञान लेकर करेंगे कार्रवाई
"केयू वीसी डॉ. डीडीएस संधू ने कहा कि वे इस मामले का संज्ञान लेकर उचित कार्रवाई करेंगे। उन्होंने कहा कि केयू प्रशासन का प्रयास है कि योग्य कर्मचारियों को उच्च पदों पर नियुक्त किया जाए। बिना अनुमति के पद पर बने रहना भी नियमानुसार गलत है।"
डिमोशन का भी नहीं पद पर असर
मजे की बात तो यह है कि उक्त अधिकारी पर डिमोशन का भी कोई असर नहीं हुआ। गौरतलब है कि केयू प्रशासन ने पंजाब और हरियाणा हाइकोर्ट की डबल बैंच के आदेशानुसार एससी वर्ग के 26 अधीक्षकों की डिमोशन की थी। इसमें उक्त अधिकारी का भी नंबर आया था। ऐसे में भले ही कागजों में अधिकारी का पद उप अधीक्षक का रह गया लेकिन उन्हें शक्तियां अभी भी प्रशासनिक अधिकारी की मिली हुई हैं। केयू वीसी को लिखे पत्र में कर्मचारी देवेंद्र सचदेवा ने आरोप लगाया कि 12 अगस्त 2009 को एसएफएस के तहत उक्त अधिकारी को प्रशासनिक अधिकारी का पद सौंपा गया था। उस समय वे अधीक्षक के पद पर कार्यरत थे। ऐसे में जब डिमोशन हुई तो उनका पद घटकर उपअधीक्षक का ही रह गया। ऐसे में अधीक्षकों के रहते निचले पद वाले को ऊंचा पद देना पूरी तरह से गलत है। इतना ही नहीं पत्र में यह भी बताया गया है कि एक साल के लिए हुई इस पद पर नियुक्ति के बाद जब समय सीमा पूरी हुई तो उसके बाद समय सीमा को बढ़ाने और स्वीकृति देने के लिए कोई फाइल नहीं भेजी गई। कर्मचारी ने इस मामले में केयू वीसी डॉ. डीडीएस संधू से उचित कार्रवाई की मांग की है। शिकायत को पूरा एक साल बीत चुका है। इसके बावजूद केयू प्रशासन की ढीली चाल के कारण कोई कार्रवाई नहीं हो पाई है।
मामले का संज्ञान लेकर करेंगे कार्रवाई
"केयू वीसी डॉ. डीडीएस संधू ने कहा कि वे इस मामले का संज्ञान लेकर उचित कार्रवाई करेंगे। उन्होंने कहा कि केयू प्रशासन का प्रयास है कि योग्य कर्मचारियों को उच्च पदों पर नियुक्त किया जाए। बिना अनुमति के पद पर बने रहना भी नियमानुसार गलत है।"
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