शोध में निष्कर्ष : महिलाओं की स्थिति के प्रस्तुतिकरण में सुधार जरूरी, सुझाव तैयार
नई दिल्ली : राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) ने मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश के स्कूलों में पढ़ाई जाने वाली किताबों का अध्ययन किया है। यह पाया कि पहली से आठवीं कक्षा तक की किताबों में चित्र, शब्द और प्रस्तुतिकरण के तरीके में ही गड़बड़ है। पुरुषों को ज्यादा तवज्जो दी जाती है। एनसीईआरटी के डिपार्टमेंट ऑफ वूमन स्टडीज की प्रो. गौरी श्रीवास्तव ने यह रिसर्च किया है। उनका सवाल है, "हमेशा पुलिसमैन या चेयरमैन शब्द का इस्तेमाल ही क्यों होता है? यदि महिला कर्मचारी है तो उसके नाम के आगे पुलिसवूमन या चेयरवूमन शब्द का इस्तेमाल क्यों नहीं हो सकता?' एमपी-यूपी के बाद प्रो. श्रीवास्तव अब झारखंड, छत्तीसगढ़, राजस्थान, हरियाणा, बिहार और जम्मू-कश्मीर के स्कूलों की किताबों का अध्ययन करेंगी।
इस तरह हो रहा है किताबों में लिंगभेद
- महिलाओं को सिर्फ बेटी, मां, बहन, सास, बहू के रिश्तों में बांध दिया गया है।
- पुरुषों को नेता, विक्रेता, किसान, डॉक्टर, क्रिकेटर, ड्राइवर, वैज्ञानिक, स्वतंत्रता सेनानी और राष्ट्रपति के रूप में दर्शाया गया है। जबकि महिलाओं को गृहिणी, शिक्षिका, नर्स के तौर पर।
- कक्षा तीन की किताब के एक चित्र में शिक्षिका लड़कों को कक्षा में पढ़ा रही है।
- कक्षा छह में लड़कों को देश के नेतृत्व पर ग्रुप डिस्कशन करते दिखाया है। लड़कियां गायब है।
- कक्षा छह से आठ तक अंग्रेजी की रैनबो किताब में 37 पुरुष पात्र हैं तो 14 महिलाएं।
- हिंदी की मंजरी में 148 पुरुष लड़कों का जिक्र है तो महिला लड़कियां केवल 48 ही हैं। db
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