बारहवीं कक्षा की उत्तर पुस्तिकाएं हाई स्कूल लेक्चरर को सौंपने का शिक्षा बोर्ड का निर्णय नितांत अतार्किक और किसी हद तक हास्यास्पद भी है। नौवीं और दसवीं कक्षाओं को पढ़ाने वाले अध्यापक बारहवीं के प्रश्नपत्रों की जांच में कितनी दक्षता दिखा पाएंगे, सहज ही समझा जा सकता है। ऐसे निर्णय किस स्तर पर लिए गए, स्पष्ट किया जाना चाहिए। दसवीं और बारहवीं के प्रथम सेमेस्टर की परीक्षा का मूल्यांकन कार्य आरंभ होने के बाद मौके पर ही यह विसंगति सामने आई। सवाल है कि मूल्यांकन कार्य के लिए दायित्व सौंपते समय समग्र, सामूहिक निर्णय लेने की प्रक्रिया को प्रभावशाली तरीके से अमल में लाया गया अथवा नहीं? आनन-फानन में लिए गए निर्णयों से सकारात्मक परिणामों की उम्मीद नहीं की जानी चाहिए। वैसे भी शिक्षा विभाग अपने अव्यावहारिक प्रयोगों के कारण लगातार चर्चाओं में रहा है। चाहे वह पाठ्य पुस्तकों की उपलब्धता का मामला हो या शिक्षकों की नियुक्ति का। तात्कालिक उपायों के लिए तो वह निरंतर तत्पर रहा पर दीर्घकालिक उपाय अपनाने में हिचक होती रही। मसला यह है कि आधारभूत तैयारी के साथ योजना बने तो उस पर अमल में अधिक कठिनाई नहीं आती लेकिन बिना तैयारी यदि निर्णय-नीति को लाद दिया जाए तो हर स्तर पर अवरोध खड़े हो जाते हैं। उन्हें हटाने और फिर व्यवस्था को पटरी पर लाने में समय और संसाधन दोनों का अतिरिक्त प्रबंध करना पड़ता है, यह अपव्यय नहीं तो और क्या है? यदि इन्हीं संसाधनों व समय को किसी अन्य उद्देश्य की प्राप्ति के लिए इस्तेमाल किया जाता तो शिक्षा विभाग को अतिरिक्त लाभ मिलता और उसकी कार्यक्षमता और व्यवस्था संचालन दक्षता में निश्चित तौर पर इजाफा होता। परीक्षा मूल्यांकन के मामले में गंभीर सवाल यह है कि जिस अध्यापक ने एक बार भी बारहवीं कक्षा को नहीं पढ़ाया या ताजा नियुक्ति पाने के कारण अध्यापन का अनुभव ही नहीं, वह मूल्यांकन कार्य में विद्यार्थियों की मेहनत का आकलन कैसे कर सकता है? उत्तर पुस्तिकाओं का मूल्यांकन ऐसा कार्य नहीं जिसका अनुमान के आधार पर निष्पादन किया जा सके। इसके लिए अध्यापक का अनुभवी होना पहली अनिवार्यता है। शिक्षा बोर्ड ने इतने अहम बिंदु को दरकिनार कैसे कर दिया, समझ से परे है। ताज्जुब है कि मामला बोर्ड के वरिष्ठ अधिकारियों के संज्ञान में ही नहीं। शिक्षा बोर्ड तमाम विसंगतियों की पहचान करके उन्हें दुरुस्त करने में गंभीरता दिखाए। सुनिश्चित करना होगा कि उत्तर पुस्तिका मूल्यांकन में किसी बच्चे के साथ अन्याय न हो, किसी अतार्किक प्रयोगवाद का शिकार न होना पड़े। djedtrl
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