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Friday, 24 January 2014

अंकों के खेल में मात खा रहीं प्रतिभाएं

** कम नहीं है प्रतिभा, पुराने सिस्टम के कारण कम है अंक प्रतिशत
राज्य सरकार की ओर से नौकरियों का पिटारा खोल दिया गया है, लेकिन कई पदों के लिए निर्धारित योग्यता के साथ अंक प्रतिशत की कड़ी शर्त हजारों युवाओं को आवेदन से वंचित कर रही है। वंचितों में बड़ी संख्या उन लोगों है, जिन्होंने  निर्धारित योग्यता तब हासिल की थी, जब सेमेस्टर सिस्टम लागू नहीं हुआ था। यह किसी से छुपा नहीं है कि सेमेस्टर सिस्टम लागू होने के बाद विभिन्न कक्षाओं में प्राप्त होने वाले अंकों का औसत प्रतिशत तुलनात्मक रूप से बढ़ गया है। इसके विपरीत जब सेमेस्टर सिस्टम लागू नहीं हुआ था, तबके अंकों का प्रतिशत कम है। हरियाणा में स्कूल शिक्षा बोर्ड ने वर्ष 2006-07 में सेमेस्टर सिस्टम लागू किया था। इस सिस्टम के बाद दसवीं हो या बारहवीं हर कक्षा में अंकों का औसत बढ़ गया है, लेकिन प्रतिभा मूल्यांकन के इस सिस्टम पर सवाल भी उठते रहे हैं। 
कुछ समय पहले सांसद राव इंद्रजीत सिंह ने यह मुद्दा उठाया था। उन्होंने व्यवहारिक तरीका तलाश करने का सुझाव दिया था, जिससे न तो सेमेस्टर सिस्टम के बाद परीक्षा उत्तीर्ण वालों को नुकसान हो और न ही इससे पूर्व परीक्षा पास करने वालों का हक छिन सके, लेकिन इस बारे में कभी सार्थक पहल नहीं हुई। 
अब जब हजारों नौकरियों का एक साथ पिटारा खुला है तो एक बार फिर यह सवाल युवा उठाने लगे हैं। कोसली के रामकिशन का कहना है कि उसकी उम्र आवेदन के योग्य है, लेकिन जिस जमाने में उसने मैट्रिक पास की थी, उस समय प्रथम श्रेणी गिने-चुने छात्रों को ही मिल पाती थी। सेमेस्टर सिस्टम में जो छात्र 70 प्रतिशत अंक पाते हैं, तबके सिस्टम में इसी बौद्धिक स्तर के छात्रों को 50 प्रतिशत अंक ही मिल पाते। ऐसे में कोई भी व्यवहारिक रास्ता निकाला जाना चाहिए। बावल रोड निवासी राधेश्याम शर्मा का कहना है कि नौकरियों में डिविजन की शर्त नहीं होनी चाहिए, बल्कि साक्षात्कार व दूसरे तरीकों से प्रतिभा का मूल्यांकन होना चाहिए। बावल रोड निवासी प्रदीप कुमार का कहना है कि उसने अब तक कई बार आवेदन किया है, लेकिन साक्षात्कार से पहले ही वे इसलिए बाहर हो जाते हैं, क्योंकि अंकों के आधार पर शार्टलिस्ट में वे पिछड़ जाते हैं।
"इस मामले को गहराई से समझने की जरूरत है। सेमेस्टर से पूर्व निर्धारित योग्यता हासिल करने वालों को अंकों में छूट देने या कोई ओर रास्ता निकालने के लिए सहानुभूति पूर्वक विचार किया जाना चाहिए।"--डॉ. उमाशंकर यादव, सहायक कुल सचिवइंदिरा गांधी युनिवर्सिटी, मीरपुर।
"हम पहले इस मामले को बारीकी से समङोंगे। यदि कोई रास्ता निकलने की संभावना हुई तो उस बारे में पहल करेंगे, लेकिन यह तभी संभव होगा, जब मैं शिक्षाविदें से राय लेकर तथ्यों को समझ लूंगा। उन लोगों को राहत अवश्य मिलनी चाहिए, जो प्रतिभावान होने के बावजूद नियमों के शिकार हैं।"--राव इंद्रजीत सिंह, सांसद।                         djrwd

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