प्रदेश के शिक्षा विभाग में कार्यरत शिक्षक की यदि सेवाकाल के दौरान मृत्यु हो जाती है तो विभाग दाह संस्कार के खर्च के लिए 20 हजार रुपये देता है। लेकिन विभाग की इस योजना की सत्यता की बात करें तो पिछले करीब पांच साल में मारे गए 32 शिक्षकों की आत्माएं अपने दाह संस्कार के लिए भटक रही है। विभाग की तरफ से वर्ष 2009 के बाद एक भी ऐसे शिक्षक का दाह संस्कार नहीं हुआ है जिनकी मृत्यु सेवाकाल के दौरान हुई थी।
दरअसल प्रदेश में वर्ष 2009 से पहले जब शिक्षा का अधिकार कानून (आरटीई) लागू नहीं था तो स्कूली बच्चों को रेडक्रास की टिकटें बेचकर वेलफेयर फंड एकत्रित किया जाता था। इस वेलफेयर फंड से उन शिक्षकों के दाह संस्कार के लिए दस हजार रुपये की सहायता राशि दी जाती थी जिनकी मृत्यु सेवाकाल के दौरान होती थी। इसके बाद प्रदेश में जब आरटीई लागू हो गया तो स्कूली बच्चों से किसी भी तरह की वसूली पर रोक लगा दी गई और इसी दौरान दाह संस्कार की राशि बढ़ाकर 20 हजार रुपये कर दी गई।
चूंकि आरटीई लागू होने के बाद स्कूलों में रेडक्रास की टिकटों की बिक्री भी बंद हो गई और वेलफेयर फंड खत्म हो गया। ऐसे में विभागीय अधिकारियों ने इस योजना को पूर्ण रूप से लागू करने के लिए कोई खास कदम नहीं उठाए। हालात यह है कि वर्ष 2009 के बाद जिले में 32 शिक्षकों की सेवाकाल के दौरान मृत्यु हो चुकी है। इन शिक्षकों को आज तक दाह संस्कार की यह राशि नहीं मिली है। dthsr
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