** तीन साल से नहीं मिला फंड
सरकारी स्कूलों में प्राथमिक उपचार देने के लिए रखे गए फस्र्ट एड बॉक्स इन दिनों खाली पड़े हैं। इन बॉक्सों में न दवा है और नहीं जख्म पर लगाने के लिए दवा। दवा है तो वह एक्सपायर हो चुकी है। ज्यादातर स्कूलों में फस्र्ट एड बॉक्स नहीं खरीदे गए। प्रिंसिपल की माने तो उनके पास फंड नहीं है, इसलिए वे इन्हें खरीदने में सक्षम नहीं है। फस्र्ट एड बॉक्स खरीदने के लिए तीन साल पहले फंड खत्म कर दिया गया था। उसके बाद अपने खर्च पर किसी ने खरीदने की जहमत नहीं उठाई।
रेडक्रॉस ने सेकेंडरी स्कूलों में दिए थे :
तीन साल पहले शिक्षा विभाग ने अंतिम बार रेडक्रॉस के माध्यम से फस्र्ट एड बॉक्स हेडक्वार्टर से खरीदे थे। ये सिर्फ सीनियर सेकेंडरी स्कूलों में ही दिए गए थे। इन स्कूलों की संख्या 50 है। जबकि अन्य स्कूलों में दिए नहीं गए।
दवा भी हो गई एक्सपायर :
फंड नहीं होने से ज्यादातर स्कूलों ने फस्र्ट एड बॉक्स को मेंटेनेंस नहीं किया। बॉक्स में दवा है या नहीं किसी ने ध्यान नहीं दिया। तीन साल पहले खरीदे होने के कारण इनकी दवा एक्सपायर हो चुकी है। विभाग के निर्देशानुसार अन्य खर्चों से ही फस्र्ट एड बॉक्स खरीद सकते हैं। लेकिन प्रिंसिपल इस पर ध्यान नहीं देते।
बच्चों में बढ़ रहा बीमारी का खतरा :
अब तो सरकारी स्कूलों में बच्चों के बीमार होने या चोटिल होने का खतरा ओर भी ज्यादा बढ़ गया है। क्योंकि दोपहर के समय बच्चों को मिड-डे मील का भोजन मिलता है। मिलावटी भोजन खाने से पेट दर्द हो सकता है।सरकारी स्कूलों में एक लाख से ज्यादा बच्चे :
जिले के सरकारी स्कूलों में करीब एक लाख 10 हजार बच्चे पढ़ते हैं। जिले में प्राइमरी स्कूलों की संख्या 632 है जिनमें 52 हजार से अधिक बच्चे पढ़ते हैं। वहीं छठी से 12वीं तक के 350 स्कूल हैं जिनमें 55 हजार से ज्यादा बच्चे हैं। इतने बच्चे और स्कूलों में उपचार का भी प्रबंध नहीं।
कुछ ही स्कूलों में हैं सुविधा
राजकीय अध्यापक संघ के जिला प्रधान प्रदीप सरीन का कहना है कि कुछ ही स्कूलों में फस्र्ट एड बॉक्स की सुविधा है। पहले इन्हे खरीदने के लिए फंड होता था जो अब नहीं है।
हर स्कूल में जरुरी है : सचिव
जिला रेडक्रॉस सचिव श्याम सुंदर का कहना है कि हर निजी और सरकारी स्कूल में फस्र्ट एड बॉक्स का होना जरूरी है। शिक्षा विभाग के अधिकारी लिखे तो इन्हें रेडक्रॉस मुख्यालय से खरीद कर दिया जा सकता है।
रिपोर्ट मांगी जाएगी : डीईओ
जिला शिक्षा अधिकारी डॉ. परमजीत शर्मा का कहना है कि उन्होंने कुछ दिन पहले ही जिले का कार्यभार संभाला है। वे सभी बीईओ को पत्र लिख कर इसकी रिपोर्ट देने को कहेंगी। जिन स्कूलों में फस्र्ट एड बॉक्स नहीं होंगे वहां भेजे जाएंगे।
हेल्थ के लिए पहले सरकारी स्कूलों में फंड होता था। यह फंड बच्चों से ही लिया जाता था। प्रत्येक बच्चे से 50 पैसे या समकक्ष लिए जाते थे। जो पैसा इक्ट्ठा होता था उससे फस्र्ट एड बॉक्स या हेल्थ संबंधी सामान खरीदा जाता था। लेकिन तीन साल पहले बच्चों से यह फंड लेना बंद कर दिया गया। वहीं शिक्षा विभाग ने अपनी तरफ से भी कोई अतिरिक्त फंड नहीं दिया। जबकि हर स्कूल में फस्र्ट एड बॉक्स का होना जरूरी होता है। ताकि जरूरत पडऩे पर बच्चों को स्कूल में ही प्राथमिक उपचार दिया जाए। अब तो हालात ऐसे हो गए हैं कि अगर स्कूल में आपके लाडले की ब्लेड से भी उंगली कट जाए तो उसे सीधे अस्पताल ले जाना पड़ेगा। dbymnr
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