** पढ़ाई के बोझ से बच्चों में बढ़ रहा मानसिक तनाव, प्रत्येक स्कूल में काउंसलर रखने का है नियम
हिसार : स्कूलों में बच्चों को कई बार दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। छोटी-छोटी बातों पर तनाव से घिर जाते हैं। वजह, मन की बात शेयर करने से हिचकिचाते रहते हैं। सेंट्रल बोर्ड ऑफ सेकंडरी एजुकेशन (सीबीएसई) ने बाल मन की उलझनों को दूर करने के लिए स्कूलों में काउंसलर रखने का फैसला किया था। मगर हालात फिर भी सुधरे। दरअसल, सीबीएसई के नियम का दरकिनार कर स्कूलों में काउंसलर नहीं रखे जा रहे।
यह हाल एक दो नहीं बल्कि 90 फीसदी स्कूलों में है। जिसके कारण छात्रों में मेंटल स्ट्रेस बढ़ रहा है। शिक्षा में गुणवत्ता के लिए सीबीएसई नए प्रयोग करती रहती है। कुछ महीने पहले सभी स्कूलों में काउंसलर रखने के आदेश दिए थे।
शहर के अधिकतर स्कूलों ने बोर्ड के नियमों को अनदेखा कर दिया। काउंसलर को नियुक्त करने के पीछे मंशा थी कि पढ़ाई से बच्चों में जो मेंटल स्ट्रेस आता है उसे कम किया जा सके। इसके लिए काउंसलरों को बच्चों से नियमित रूप से बात करनी थी। सीबीएसई बोर्ड के नियमों से बचने के लिए स्कूलों ने नायाब तरीके निकाल लिए। स्कूलों ने एक महीने में या दो महीने में बाहर से काउंसलर बुलाकर छात्रों से रूबरू कराकर इतिश्री कर ली। वहीं जिन स्कूलों की कई ब्रांच है, उन्होंने हेड आफिस में एक काउंसलर की नियुक्ति कर दी। अपने प्रोफाइल में शो करा दिया कि हमारे पास काउंसलर है। जबकि नियमानुसार हर ब्रांच में एक काउंसलर होना चाहिए। बता दें कि हिसार में 45 से ज्यादा सीबीएसई स्कूल संचालित है।
टीचर बने हैं काउंसलर
अधिकतर सीबीएसई स्कूलों में टीचर काउंसलर बनकर बच्चों से रूबरू हो रहे हैं। सीबीएसई के कई स्कूल हैं, जिन्होंने काउंसलिंग की जिम्मेदारी शिक्षकों को सौंप रखी है।
हैरत की बात है कि काउंसलर नियुक्त करने की जगह स्कूल प्रशासन बहाना बनाते हैं कि उनके यहां शिक्षक ही काउंसलिंग के लिए पर्याप्त है। काउंसलर की जरूरत नहीं है।
ये बनाए गए थे नियम
- प्रत्येक सीबीएसई स्कूल ब्रांच में एक काउंसलर जरूर होना चाहिए।
- बच्चों में मेंटल स्ट्रेस को कम करने के लिए रोजाना बातचीत की जाए।
- प्रवेश और परीक्षा के समय काउंसलर बच्चों को विशेष गाइडेंस दे।
- प्रत्येक सीबीएसई स्कूल को हर माह फीडबैक भी देना होगा।
हर संभव मदद करता है काउंसलर
साइकोलॉजिस्ट संदीप राणा कहते हैं कि बच्चों के विकास में काउंसलर की अहम भूमिका होती है। बच्चों में स्ट्रेस, हिंसा, मनोवैज्ञानिक समस्याओं को दूर करने में काउंसलर सहायक होता है। सकारात्मक स्किल्स को डेवलप करता है। क्रिएटिविटी बढ़ाने के साथ बच्चों की पर्सनालिटी का आंकलन करता है। काउंसलर कॅरिअर को लेकर भी मदद करता है।
"सीबीएसई स्कूलों में टीचर्स की संख्या कम हो रही है। काउंसलर मिलना तो बहुत मुश्किल है। स्कूल में सीनियर क्लासेज के बच्चों के लिए बाहर से काउंसलर बुलाते हैं। छोटे बच्चों को टीचर गाइडेंस करते रहते हैं। बच्चों की समस्याओं को पहचानने की कोशिश करते हैं और उनके अभिभावकों को बुलाकर बातचीत करते हैं।''--वर्षा राणा, प्रिंसिपलसेंट सोफिया स्कूल। db
No comments:
Post a Comment
Note: only a member of this blog may post a comment.