नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी है कि किसी कर्मचारी के खिलाफ सेवानिवृत्ति के बाद अनुशासनात्मक कार्यवाही जारी नहीं रह सकती। बशर्ते कि किसी सेवा विशेष के नियमों के तहत ऐसी कार्रवाई की इजाजत हो। सर्वोच्च अदालत ने इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला रद्द करते हुए यह व्यवस्था दी है। हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार के अंतर्गत एक संगठन के कर्मचारी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही जारी रखने को सही ठहराया था।
जस्टिस टीएस ठाकुर और जस्टिस सी नागप्पन की पीठ ने उत्तर प्रदेश सहकारी कर्मचारी सेवा नियमन, 1975 के प्रावधानों पर गौर करने के बाद कहा कि सेवानिवृत्ति के बाद भी अनुशासनात्मक कार्यवाही जारी रखने का इसमें न तो कोई प्रावधान है और न ही ऐसा कोई प्रावधान है जिसके तहत कदाचार सिद्ध होने पर उसके सेवानिवृत्ति के लाभ में कटौती की जा सके। पीठ ने कहा कि एक बार अपीलकर्ता 31 मार्च 2009 को नौकरी से सेवानिवृत्त हो गया तो प्रतिवादियों को उसके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही जारी रखने और यहां तक कि सेवानिवृत्ति के समय देय लाभों में किसी प्रकार की कटौती करने का भी अधिकार नहीं है। अदालत ने कहा कि इस तरह के किसी अधिकार की अनुपस्थिति में यही कहा जाएगा कि जांच खत्म हो गई थी और अपीलकर्ता सेवानिवृत्ति के सभी लाभ पाने का हकदार है।
सर्वोच्च अदालत में इस मामले में अपीलकर्ता सहायक इंजीनियर देव प्रकाश तिवारी के खिलाफ 2006 में अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू की गई थी। यह उसके मार्च 2009 में सेवानिवृत्त होने के बाद भी जारी थी। पीठ ने राज्य सरकार और उप्र सहकारी संस्थागत सेवा बोर्ड को निर्देश दिया कि देव प्रकाश तिवारी को सेवानिवृत्ति के सारे लाभ दिए जाएं और उसकी बर्खास्तगी से लेकर सेवानिवृत्त होने की अवधि के बकाया वेतन और भत्तों का भी भुगतान किया जाए। au
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