वार्ता बेनतीजा रहने के बाद सरकार को अल्टीमेटम और कक्षाओं के बहिष्कार के एलान के साथ अतिथि अध्यापकों ने अपने तेवर आज जाहिर कर दिए। दूसरी तरफ गेस्ट टीचर के प्रति सरकार का रवैया अचानक बदल जाना हैरानी का विषय है। हाल के कुछ दिनों तक सरकार उन्हें पक्का करने का भरोसा देते नहीं थकती थी अब एकाएक पल्ला झटक लेने से परेशानी बढ़ना स्वाभाविक है। 15 हजार से अधिक अध्यापक अनिश्चित वर्तमान और असुरक्षित भविष्य की मर्माहत पीड़ा ङोल रहे हैं। सबसे बड़ा सवाल सरकार की नीति व नीयत पर है। क्या वह वास्तव में उनके करियर को स्थायित्व देना चाहती है? वर्षो तक लगातार आश्वासन देने के पीछे मकसद क्या था? यदि गेस्ट टीचर की नियुक्ति में नियमों की अवहेलना हुई तो इसके लिए दोषी कौन है? क्या इस मुद्दे का वास्तव में कोई हल है? गेस्ट टीचरों को सबसे अधिक उम्मीद सरकार की तीन वर्षीय नियमितीकरण नीति से थी, अब सरकार उससे भी कन्नी काटती दिखाई दे रही है। तो क्या यह माना जाए कि सरकार हर संभव प्रयास करके देख चुकी पर समस्या का हल नहीं सूझ रहा। अतिथि अध्यापकों की इस पीड़ा को भी गहनता से समझना होगा कि सरकार ने उनका पक्ष सुने बिना ही समायोजित न करने का फैसला सुना दिया। यह तो तय है कि सरकार के मुकरने के बाद स्थिति टकरावपूर्ण होगी। करियर दांव पर लगा हो तो किसी के भी धैर्य का पैमाना छलक सकता है। गेस्ट टीचर के आर-पार की लड़ाई पर उतरने से शिक्षा क्षेत्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ना निश्चित है। अगले माह दसवीं और बारहवीं की सेमेस्टर परीक्षा आरंभ हो जाएगी, पाठ्यक्रम अभी पूरा नहीं हुआ, उसके बाद रिवीजन भी होना है। शिक्षकों के हजारों पद रिक्त होने तथा अतिथि अध्यापकों के आंदोलन पर चले जाने से विद्यार्थियों की हालत क्या होगी, आसानी से समझा जा सकता है। सरकार को अपने तमाम कौशल का इस्तेमाल कर हालात को सामान्य रखने की कोशिश करनी होगी। सरकार के पास विकल्प बेहद सीमित हैं। गेस्ट टीचरों के समायोजन की प्रक्रिया बहुत पहले आरंभ होनी चाहिए थी। क्रमबद्ध ढंग से काम होता तो समस्या विकराल नहीं बनती। अब सरकार को दो मोर्चो पर चुनौती ङोलनी पड़ेगी। हजारों पात्र अध्यापक भी आंदोलनरत हैं। उन्हें शिकायत थी कि अतिथि अध्यापकों पर जरूरत से ज्यादा स्नेह उंडेला जा रहा है। अब सरकार को अपनी साख के साथ अध्यापकों का करियर बचाने के लिए गहन मंथन करके ठोस पहल करने की आवश्यकता है। djeedtrl
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