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Thursday, 2 October 2014

परीक्षा परिणाम : तय हो जवाबदेही

परीक्षा परिणाम खराब आने पर निराशा स्वाभाविक है। परिणामों का उतार-चढ़ाव भी सामान्य प्रक्रिया है। परिणाम जब उम्मीद से मीलों परे हो और प्रतिक्रिया सामान्य न रह कर अतिरेक को दर्शाए तो दोनों ही परिस्थितियां घोर दुख का कारण बन जाती हैं। ऐसा ही गुड़गांव में हुआ। उम्मीद से बेहद कम नंबर आने पर कॉलेज छात्र ने आत्मदाह कर लिया। गंभीर हालत में छात्र ने कॉलेज प्रशासन पर उसे तंग करने का आरोप भी लगाया। अहम सवाल यह है कि परीक्षा परिणाम के मामले में महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय की साख एवं विश्वसनीयता पर अब तक सवाल क्यों उठ रहे हैं? जिस निजी कंपनी को मदवि ने एडमिशन और परीक्षा परिणाम का दायित्व सौंप रखा है, उस पर विद्यार्थी पहले भी कई गंभीर आरोप लगाते रहे हैं। कारण चाहे तकनीकी हो या तंत्र की लापरवाही, कई विषयों का परिणाम ऐसा आया जिस पर कोई सहज विश्वास ही न कर सके। शिकायतें उच्च स्तर तक भी भेजी गईं पर निजी कंपनी नायसा के खिलाफ विवि प्रशासन कभी सख्त नहीं दिखाई दिया। गुड़गांव में कई स्तर पर गंभीर चूक हुई। परीक्षा परिणाम तैयार करने की प्रक्रिया की पुनर्समीक्षा की अर्से से मांग की जा रही है, विवि प्रशासन ने रवैया स्पष्ट क्यों नहीं किया? यह जानने की कोशिश क्यों नहीं हुई कि कॉलेज प्रशासन की कार्यशैली कितनी व्यावहारिक है? छात्र को कॉलेज परिसर में अपने ऊपर पेट्रोल छिड़कने से किसी ने रोका क्यों नहीं? सबसे चिंताजनक बिंदु यह है कि कॉलेज की प्राध्यापक ने छात्र को माचिस थमा दी। विद्यार्थियों की मानसिकता, मनोवृत्ति को समझते हुए उनके साथ मनोवैज्ञानिक तरीके से व्यवहार क्यों नहीं किया गया? घटनाक्रम से आभास हो रहा है कि सभी वहां तमाशबीन थे और मानो किसी स्टंट सीन की शूटिंग देख रहे थे। वहां के माहौल के लिए कौन जिम्मेदार है? क्या उसे कठघरे में नहीं खड़ा किया जाना चाहिए? विश्वविद्यालय, कॉलेज, विद्यार्थी, शिक्षक और अभिभावक आपसी समझ व परस्पर सरोकार के स्वाभाविक ताने-बाने से एक-दूसरे से जुड़े रहते हैं। गुड़गांव प्रकरण से साबित हो रहा है कि यह ताना-बाना छिन्न-भिन्न था। ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो, इसके लिए आधारभूत स्तर पर व्यापक चिंतन जरूरी है। त्रुटिहीन परीक्षा प्रक्रिया, आधुनिक अध्यापन प्रणाली और विद्यार्थियों के मनोविज्ञान को समझते हुए उनसे आचार-व्यवहार से ही अपेक्षित लक्ष्य की प्राप्ति संभव है। केवल प्रकोष्ठ बनाने से काम नहीं चलने वाला, शिक्षण संस्थानों की बेहतर कार्य संस्कृति और तार्किक प्रक्रिया संचालन से ही खामियों को न्यूनतम स्तर तक लाना संभव हो पाएगा।                                               djedtrl                                         

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