** पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र के स्टूडेंट की मैथ्स में सर्वाधिक रुचि।
** सीबीएसई में ए1 ग्रेड अंक 2011 के 93 से घटकर 2013 में 91 पर आए।** कंप्यूटर, मोबाइल, कैल्कुलेटर के चलते व्यक्तिगत गणना का स्तर गिरा।
नई दिल्ली : सीबीएसई की 12वीं क्लास का मैथ्स का पेपर बेहद कठिन रहा, इसके आईआईटी स्तर के होने और निर्धारित तीन घंटे के बजाए साढ़े चार घंटे मेंे हल होने की बात कही गई। यह मामला संसद में भी उठा। ऐसे में भास्कर ने देश में मैथ्स की पूरी पड़ताल की। मैथ्स के प्रति विद्यार्थियों का रुझान कैसा है और क्या मैथ्स पढ़ने वाले विद्यार्थियों की मेरिट का स्तर वाकई में घट रहा है। देश में लगातार मैथ्स के स्टूडेंट बढ़ रहे हैं लेकिन 100% अंक लाने वालों की संख्या लगातार घट रही है। अकेले सीबीएसई में ही पांच वर्ष में 12वीं के छात्रों की संख्या 80 हजार से अधिक बढ़ गई। संख्या बढ़ने के बावजूद पिछले चार वर्षों में 100% अंक लाने वालों की संख्या करीब 26 प्रतिशत घटी है।
यह स्थिति 12वीं, बीई, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सौ से अधिक देशों के बीच होने वाली इंटरनेशनल मैथमेटिकल ओलंपियाड में ही नहीं बल्कि प्राइमरी स्कूलों में भी है। ओलंपियाड में भारत 2012 में 11वें पायदान पर था जो 2014 तक खिसककर 39वें पायदान पर गया है, यह अब तक का सबसे निराशाजनक प्रदर्शन है। ओलंपियाड में वर्ष 2001 में भारत को सातवीं सबसे अच्छी रैंकिंग मिली थी। जबकि चीन लगातार दो साल से नंबर एक है।
सीबीएसई में ए1 ग्रेड के अंक वर्ष 2011 में 93-100 से घटकर वर्ष 2013 में 91-100 पर गए। चेन्नई मैथमेटिकल इंस्टीट्यूट के निदेशक राजीव लक्ष्मण करंदीकर ने बताया कि पहले गणित के सवाल हल करना कठिन था लेकिन कंप्यूटर के कारण सवाल हल करने की प्रक्रिया सरल हो गई है। मोबाइल, कंप्यूटर और कैल्कुलेटर से व्यक्तिगत तौर पर गणना का स्तर गिरा है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मैथ्स के मामले मंे वर्तमान में भारत की स्थिति अच्छी है लेकिन चीन, अमेरिका, जापान और ब्रिटेन के अलावा ईरान, दक्षिण कोरिया और ईस्ट यूरोप के देश भी टक्कर दे रहे हैं। देश में पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र ऐसे राज्य हैं जहां के विद्यार्थी सर्वाधिक मैथ्स में रुचि रखते हैं। राज्यों के परीक्षा बोर्ड क आंकड़े इससे अलग नहीं हैं। बिहार में 12वीं क्लास में मैथ्स में प्रथम श्रेणी आने वाले छात्रों में कमी दर्ज की गई है।
छत्तीसगढ़में पास होने वाले विद्यार्थियों का प्रतिशत तो बढ़ा है लेकिन उनकी संख्या में वर्ष 2014 में तीन हजार की कमी दर्ज की गई। वहीं 10वीं में गणित का पेपर 150 से घटाकर 100 अंकों का कर दिया है। मध्य प्रदेश में स्टेट इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन जबलपुर की रिपोर्ट के अनुसार इंटरनेशनल मैथ्स ओलंपियाड के लिए 1996 के बाद पहली बार पिछले वर्ष भोपाल के सर्वेश मित्तल को चुना गया। एसोसिएशन ऑफ टेक्नीकल प्रोफेशनल इंस्टीट्यूट, मप्र के सचिव बीएस यादव बताते हैं कि स्कूल स्तर पर मैथ्स की पढ़ाई में सुधार आवश्यक है। लगातार मेधावी स्टूडेंट को लेकर संघर्ष जारी है। बीई में मैथ्स के होने वाले एमवन, एमटू और एमथ्री पेपर में 80 फीसदी से अधिक अंक लाने वाले छात्रों की संख्या गिर रही है, यहां तक कि सेमेस्टर बैक होने वाले छात्रों की संख्या में भी बढ़ोत्तरी हो रही है।
एसोसिएशन ऑफ मेथमेटिक्स टीचर्स ऑफ इंडिया के जनरल सेक्रेटरी एम. महादेवन ने कहा कि मैथ्स में छात्रों के ज्यादा आने का कारण इससे सर्वाधिक रोजगार के अवसर बनना है। इंजीनियरिंग, फाइनेंस के अतिरक्त कंप्यूटर साइंस, बायो टेक्नॉलाजी यहां तक कि मेडिकल साइंस जैसे विषयों में भी गणित की उपयोगिता बढ़ रही है, ऐसे में गणित के क्षेत्र में लगातार छात्र आते रहेंगे।
बायोलॉजी में बढ़ रही उत्कृष्टता
100 में से 100 अंक लाने वाले छात्र
वर्ष गणित कैमेस्ट्री बायोटेक फिजिक्स बायोलॉजी
2011 1,448 724 09 355 251
2012 0,987 559 10 580 181
2013 0,701 413 30 754 426
2014 1,069 622 23 480 791
प्राइमरी स्तर पर भी कमजोरी
गुणवत्ता में गिरावट का स्तर निचले स्तर पर भी है। शिक्षा के क्षेत्र में कार्य करने वाली संस्था प्रथम की इसी वर्ष प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक देश के ग्रामीण क्षेत्रों में वर्ष 2012 में तीसरी क्लास के 26.3 फीसदी छात्र ही दहाई अंकों को घटा पा रहे थे जबकि 2014 में यह स्तर घटकर 25.3 फीसदी पर गया। इसी प्रकार 2014 में दूसरी क्लास के सिर्फ 11.9 फीसदी छात्र ही एक से नौ तक के नंबर पहचान पा रहे थे जबकि वर्ष 2009 में यह स्तर 19.5 फीसदी था। वहीं 2014 में पांचवीं से आठवीं तक के 44 फीसदी छात्र ही भाग कर पाने में सक्षम थे। db
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