रोहतक : एमडीयू में पीएचडी कर रहे शोधार्थियों की अब हर छह माह में मॉनिटरिंग करनी जरूरी होगी। पीएचडी शोधार्थियों के शोध का आंकलन उनके गाइड के द्वारा ही किया जाना जरूरी होगा। इसके लिए एमडीयू प्रबंधन द्वारा फैसला लिया गया है कि अब तीन साल में कम से कम छह बार शोधार्थियों के शोध पर रिपोर्ट ली जाती रहे।
इससे हर छह महीने में शोधार्थियों की मॉनिटरिंग के बाद उन शोधार्थियों पर भी नजर रखी जा सकेगी, जोकि एक बार शोध के लिए पीएचडी में पंजीकरण कराने के बाद गायब हो जाते हैं और फिर तीन साल बाद ही शोध जमा कराने के लिए विवि में आते हैं। इससे उन पर निगरानी भी नहीं रखी जाती। बता दें कि एमडीयू में हर साल तकरीबन 15 से 20 डिग्री दी जाती है।
जांचना होगा शोध का काम:
नई व्यवस्था होने के बाद शोधार्थियों के गाइड को हर छह माह में शोध के काम को भी जांचना होगा। इस दौरान यह भी तय किया जाएगा कि छह माह में कितना काम शोधार्थी ने किया और आगे वह कितना काम अगले छह माह में करेगा। इससे शोधार्थियों के शोध में निखार आएगा।
घट रही शोध की गुणवत्ता
जानकारों की मानें तो फिलहाल ऐसे शोध की भरमार है, जिसमें दूसरे शोध व किताबों की ही बातों को दोहरा दिया जाता है। जबकि शोध में कुछ नया करने का मकसद होना चाहिए। इससे सिर्फ डिग्रीधारी शोधार्थियों की संख्या ही बढ़ रही है, लेकिन इन शोध का प्रयोग आमजन के हित में नहीं किया जा सकता है। साथ ही इनसे कोई नया खुलासा भी नहीं हो पा रहा है।
"पीएचडी शोध को गुणवत्तापरक बनाने के लिए इस तरह का कदम उठाया गया है। अब हर छह महीने में शोध की रिपोर्ट जांचने से शोधार्थियों की मॉनिटरिंग भी की जा सकेगी।"--एचएस चहल, कुलपति, एमडीयू। db
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