प्रेरणास्पद > दूसरे स्कूल कम बजट का रोना रोते हैं, उतने पैसों में ही प्राथमिक पाठशाला धनाना में परोसा जा रहा है बेहतरीन खाना
भिवानी : अधिकतर राजकीय स्कूल मिड डे मील के बजट का रोना रोते रहते हैं कि इतने कम पैसों में बच्चों को कैसे खिलाएं। इसके ठीक विपरीत हमारे ही जिले के गांव धनाना में चल रही राजकीय प्राथमिक पाठशाला ऐसी है, जहां मिड डे मील में बच्चों को शुद्ध देशी घी का हलवे के अलावा मटर पनीर की सब्जी के साथ सलाद भी परोसी जाती है।
मिड डे मील इंचार्ज राजेंद्र सिंह की मानें तो जितना पैसा खाने के लिए मिलता है, उससे विद्यार्थियों को अच्छा खाना परोसा जा सकता है, बशर्ते ऐसा करने की नीयत होनी चाहिए। राजकीय प्राथमिक पाठशाला में पढऩे वाले बच्चों को उनकी उम्र के हिसाब से बेहतर खाना मिलना जरूरी है। इस दौरान बच्चों का शारीरिक व मानसिक विकास होता है। इसी बात को ध्यान में रखकर धनाना में चल रहे राजकीय प्राथमिक पाठशाला के विद्यार्थियों को घर जैसा खाना परोसा जाता है। ऐसा नहीं है कि स्कूल में विद्यार्थियों की संख्या कम है, इसलिए इतना बेहतर खाना दिया जाता है।
"बच्चों को मिलने वाली राशि को बड़े ध्यान से खर्च किया जाता है। जब भी मिड डे मील के लिए किसी सामान की जरूरत होती है तो उस ओर से आने-जाने वाले शिक्षक को इसका जिम्मा दे दिया जाता है। इससे इस सामान को लाने पर होने वाला खर्च बच जाता है। वे सब्जियां भी खेत में जाकर सीधे किसानों से खरीदते हैं। गेहूं-चावल से बने आयटमों जैसे खिचड़ी, पुलाव, सिंपल रोटी सब्जी पर खर्च बहुत कम होता है, जबकि मीठा दलिया, हलवा व मटर पनीर बनाने में खर्चा ज्यादा होता है। इसलिए कम खर्च वाले दिन की राशि ज्यादा खर्च वाले दिन में जुड़ जाती है। बच्चों को सलाद खिलाने के लिए हम हर रोज 20 से 22 किलो टमाटर की कैरेट खरीदते हैं, जो 90 या 100 रुपये में मिल जाती है। चार से पांच किलो टमाटर सब्जी में और बाकी सलाद में प्रयोग की जाती है। बच्चों को मिलने वाले खर्च में अच्छा खाना दिया जा सकता है, बशर्ते काम करने की नीयत साफ हो।"--राजेंद्र सिंह, इंचार्ज, मिड डे मील, प्राइमरी पाठशाला, धनाना db
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